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มูสัยโจได้
स्तवन-विभाग
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जत्रप्रनत्रजननननननननननननन.क्र-मप्रलमत्रपत्र
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अक्षर रूपे सारदा, प्रणम त्रिकरण योग ॥२॥ टीका करतां जगतगुरु, सूत्र करे गणधार । पंचागी युत विस्तरे, नय निक्षेप विस्तार ॥३॥ दुषम काल दुर्भिक्ष में, भूले बारम अंग। कंठ पाठ से लिखित कर, रचना रची अभंग ॥४॥ खंदिल अरु देवड्डि गणि, आचारज सय पंच । चौरासी आगम लिखे, कोटि ग्रन्थ तज खंच ॥५॥ काल दोष से अब मिले, आगम पैंतालीस । ताको मुनि विवरण करे, माने बिसवा बीस ॥६॥
(जगगुरु त्रिशला नंदजी ) आचारांग पहिलो कह्यो जी, मुनि आचार विचार । सूयगडांग दुजो अछे जी, षट मत दर्शन सार || जगत्गुरु भाखे वीर जिनंद ॥७॥ दस ठाणा ठाणांगमे जी, समवायांग संख्यात । सहस छतीस भला प्रशन जी, भगवई अंग विख्यात ॥ ज० ८ ॥ धर्म कथा ज्ञाता भणी जी, दस श्रावक व्रत
धार । दसाउपासक सातमो जी, अंग कह्यो निरधार ॥ ज० ९ ॥ अंतगड | केवली जे थया जी, वरणन अष्टम अंग । पंचानुत्तर जे गया जी, अणुत्तरो
ववाई चंग ॥ ज० १० ॥ अंगुष्टादिक प्रश्नो जी, प्रश्न व्याकरण नाम । सुख दुःखना फल भाखिया जी, सूत्र विपाके ताम ॥ ज० ११ ॥ अठारे सहस आचारांगमें जी, पद संख्या परिमाण । वर्ण संख्या ते पद हुवे जी, ठाण दुगुण सब जाण ॥ ज० १२ ॥ उववाई ऊपांगमें जी, कोणिक अंबड रूप । वर्णन नगरी आदि दे जी, सांभल भविजन चूप ॥ ज० १३ ॥ सूरियाम पूजा करी जी, जिन प्रति मानव रंग । द्रव्य भाव बिहुं भेदसं जी, राय प्रश्नी चित चंग ॥ ज० १४ ॥ जीव तणो अभिगम सही जी, विजयदेव प्रस्ताव । जीवाभिगम तीजो कह्यो जी, सुर कृति बहुविध भाव ॥ज०१५॥ पन्नवणा में जान ज्यो जी, जीवा जीव विचार । जम्बूद्वीपनी वर्णना जी, नाम थकी निरधार ॥ ज० १६ ॥ सूरचन्द्र विग्रह गती जी, पन्नति विहुँ जान । कप्पिया कप्प वडिंसया जी, पुफिया नाम वखान ॥ ज० १७ ॥ पुप्फ चूलिया जाणिये जी, वह्नि दशा इण नाम । नामथी अर्थ पिछाणि ज्ये जी, सांभलता सुखधाम ॥ ज० १८ ॥
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ไงไม่ให้ได้ในไฟได้ไกลไดไฟในไดนไวไขเเนะ