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జనన
स्तवन-विभाग
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उपधारा
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नीवी व्रत दुजो कह्यो रे लाल, ए धारो जिनवर वाण ॥ भ० वी ५॥ आम्बिल नो फल बहु कह्यो रे लाल, उपजे लवधि अपार । उपवास करतां भावसू रे लाल, पामें भव नो पार ॥ भ० वी० ६ ॥ इम दिन सोले तप करो रे लाल, पूरण व्रत ए थाय । देव गुरू पूजा करे रे लाल, मन बंछित फल पाय ॥ नर सुर ऋद्धि पिण भोगवे रे लाल, निश्चय मुगति जाय ॥ भ० वी० ७॥
उपधान तप स्तवन श्री महावीर धरम परकासे, बैठी परषद बार जी । अमृत वचन सुनी अति मीठा, पामें हरख अपार जी ॥१॥ सुनो सुनो रे श्रावक उपधान वह्या विन किम सूझे नवकार जी। उत्तराध्ययन बहुश्रुत अध्ययने, एह | भण्यो अधिकार जी ॥ सुनो० २ ॥ महानिशीथ सिद्धान्त माहे पिण, उपधान तप विस्तारें जी । अनुक्रम शुद्ध परस्पर दीसे, सुविहित गच्छ आचारें जी ॥ सुनो० ३ ॥ तप उपधान वह्यां बिन किरिया, तुच्छ अलप फल जान जी । जे उपधान वह्यां नरनारी तेह नो जनम प्रमाण जी ॥ सुनो० ४ ॥ तप उपधान कह्यो सिद्धान्ते, जो नवि माने जेह जी । अरिहन्त देव नी । आण विराधे, भमस्ये भव भव तेह जी ॥ सुनो० ५॥ अघड्या घाट समा नरनारी, बिन उपधाने होय जी । किरिया करतां आदेश निरदेश, काम सर नहीं कोय जी ॥ सुनो. ६ ॥ इक घेवर ने खांडे भरियो, अतिघणो मीठो थाय जी । एक श्रावक उपधान वहे तो, धनधन ते कहिवाय जी ॥ सुनो० ७ ॥
॥ ढाल ॥ नवकार तणो तप पहिलो वीसड जाण, इरिया वहिनो तप बीजो वीसड आण । इण विहु उपधाने निश्चय नाण मंडाण, बारे उपवास गुरु मुख सेवे वाण ॥ सुनो० ८ ॥ पैंतीसड़ त्रीजो णमुत्थुणं उपधान, त्रिण वायण उगणीस तप उपवास प्रधान । अरिहंत चेई तप चौथो चौकड एह, उपवास अढ़ाई वाण एक गुण गेह ॥ ९ ॥ पांचमो लोगस्स तप अठ्ठावीसड़
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