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रतवन-विभाग
(आव्यो तिहां नरहर) हिव अंगुल अढ़िये ऊणो मानुष क्षेत्र, संज्ञा पंचेन्द्री तिहां जे वसय विचित्र । तसु मन नो चिंतित जाणो थूल प्रकार, ते ऋजूमति नामे अट्ठम लवधि विचार ॥८॥ संपूरण मानुष क्षेत्र संज्ञावंत, पंचेन्द्रिय जे छे वाता तंत । सूखम परजायें जाणे सहू परिणाम, ए नवमी कहिये विपुलमती शुभ नाम ॥९॥ जिण लबधि प्रभावे उड़ी जाय आकाश, ते जंघा विद्या चारण लवधि प्रकाश । जसु वचन सरापे खिण में खेरूं थाय, ए लबधि इग्यारमी आशीवीश कहवाय ॥१०॥ सहु सूखम बादर देखे लोकालोक, ते केवल लब्धि बारमिये सहू थोक । गणधर पद लहिये तेरम लब्धि प्रमाण, चवदम लबधि करी चवदे पूरव जाण ॥११॥ तीर्थकर पदवी पामे पनरम लबधि, सोलम सुखदाई चक्रवति पद रिद्धि। बलदेव तणो पद लहिये सतरमी सार, अढारमी आखा वासुदेव विस्तार ॥१२॥ मिसरी घृत क्षीरे मेल्या जेह संवाद, एहवी अहे वाणी उगणीशम परसाद । भणियो नवि मूले सूत्र अरथ सुवि
चार, ते कुष्ट कुबुद्धि वीसम लब्धि विचार ॥१३॥ एके पद भणिया आवे 1 पद लख कोड, इकवीसमी लबधि पचाणु सारणी जोड । एक अरथे करी उपजे अरथ अनेक, बावीसम कहिये बीज बुद्धि सुविवेक ॥१४॥
कपूर हुवे अति ऊजलो सोलह देश तणी सही रे, दाहक शक्ति बखाण । तेह लबधि तेवीसमी रे, तेजो लेश्या जान ॥ चतुर नर सुणज्यो ए सुविचार, आगम ने अधिकार वारू लवधि विचार ॥ च० ॥ १५ ॥ चवद पूरवधर मुनि वरू. रे, उपजतां सन्देह । रूप नवो रचि मोकले रे, लवधि आहारक एह ॥ च० १६ ॥ तेजो लेट्या अगन नी रे, उपशमवा जलधार । मोटी लवधि पचवीसमी रे, शीतो लेश्या सार । च० १७ ॥
जेन मुक्ति सुं विकरचे रे, विविध प्रकारे रूप । सद्गुरु कहे छवीसमी रे, '. वैक्रिय लवधि अनूप ।। च० १८ ॥ एकल पात्र आइरी रे. जीमाड़े कइ . .. लाख । नेह अक्खीण महानसी रे, सत्तावीलमी साख ॥ च० १९ ॥ चूरे .
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