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जैन-रत्नसार सेन चक्कीसनी रे, संघादिक ने काम । तेह पुलाक लबधि कही रे, अट्ठावीसमो नाम ॥ च० २० ॥ तेज शीत लेश्या बिहू रे, तेम पुलाक विचार । भगवती सूत्र में भाखियो रे, ए त्रिहु नो अधिकार ॥ च० २१ ॥ पण्णवणा आहारनी रे, कलप सूत्र गणधार । तीन तीन इक इक मिली रे, वारू आठ विचार ॥ च० २२ ॥ प्रश्न व्याकरणे सही रे, बाकी लब्ध्यां वीश । सांभलता सुख ऊपजे रे, दौलत हुए निश दीश ॥ च० २३ ॥
कलश संवत्* सतरे सै छवीसें, मेरु तेरस दिन भले। श्री नगर सुखकर लूणकरणसर, आदि जिन सुपासा उले ॥ वाचना चारज सुगुरु सानिध, विजय हरख विलास ए। श्री धर्म वर्द्धन स्तवन भणता, प्रगट ज्ञान प्रकास ए ॥२४॥
चतुर्दश पूर्व चैत्यवन्दन पहले पद उत्पाद दुजो आग्रायणि जाणे, तीजो वीर्यवाद चौथो अस्तिनास्ति बखाणे । नारगरयण पंचम पूर्व छठे सत्य सुहायो, सप्तम आत्म अष्टम कर्मवाद कहायो ॥१॥ प्रत्याख्यान नवम विद्याप्रवाद दशमें, ग्यारम नाम कल्याण प्राणायु बारम इसमें । क्रिया विशाल तेरमो ए विन्दुसार चौदमो जाण, इनको नित उठ वन्दना पामें सूरज कल्याण ॥२॥
चतुर्दश पूर्व तप स्तवन जिनवर श्री वर्धमान चरम तीर्थंकर, प्रह उठी प्रणम मुदा ए । श्रुतधर श्री गणधार, सूरि शिरोमणी नमतां नव निधि सम्पदा ए ॥१॥ चवदे पूरब नाम, सूत्रे पूजुवा वीर जिनन्दे भाखिया ए । ते हिव सुगुरु पसाय, वरणविस्यं इहां आगममें जिम उपदिस्या ए ॥२॥ पहिला पूर्व उत्पाद, दुजो आग्रायणी वीर्यवाद तीजो नम ए । अस्ति नास्ति प्रवाद सत्ता जानिये, नारग रयण पंचम गिणं ए ॥३॥ छटो सत्यप्रवाद सत्तम आतम कर्म प्रवाद
* यह स्तवन १७२६ में श्री धर्म वर्द्धन जी महाराज ने बनाया है।
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