________________
v
.
.
.
M
v
.
.
..
."
virain AmrwwwwwwwwwwwwvNiwww.nwww..
ได้ไปไหนไม่ได้ ได้ ได้จใคในไดได้ ไว้ได้ใจได้ใจ ได้ใคคไขใจได้ใจได้ใจใคได้ไขใจ ด้ไว้ใจไดไว้ได้ใจ ไวไว จนใจไรใคร ๆ ในคไท คลใจใดใด ไคโคไคโตได้ใจ ใจ ใจ ใคไตใจได้ 12 ไจไดใน โกงไกใจใคใตไตยใด ๒ โรคไต โจได้ โดนใจใคได้ไหลไคร้
जैन-रत्नसार ...... ... .ran नित घर घर महोच्छव नित नवला सिणगार, जिन शासन देवी लब्धि रुचि जयकार ॥२॥
छम्मासी तप चैत्यवन्दन नव चौमासी वीर जिन, एक कियो छम्मास । पांच कम फिर छः करया, और भी कर-या है मास ॥१॥ बहत्तर मास खमण जिन किया, दो छम्मासी जाण । तीन अढाइ दो दो किया, दो डेढ मासी वखाण ॥२॥ छम्मासी तप करयो ए, वीर प्रभू मन आन । सूरज आराधो एमने, पाबे पद निर्वान ॥३॥
छम्मासी तप का स्तवन गौतम स्वामी रे बुध दो निरमली, आपो करिय पसाय । महावीर स्वामी जे जे तप किया, उनका कहिलूँ विचार । वलि वलि वांदृ वीर जी सुहामणा ॥१॥ भावठ भंजण सेव्यां सुख करे, गातां नवनिधि आय । बारे बरसां वीर जी तप कियो, दूर कर सहु पाप ॥२॥ बे करजोड़ी ए हूँ वीनवं, श्री जिन शासन राय । नाम लिया थी नवनिधि संपजे, दरसन दुरित पुलाय ॥३॥ नव चौमासा जिनजी जाणिये, एक कियो छम्मास । पांच उणा छ वली जाणिये, बारके कोजी मास ॥४॥ बहुत्तर मास खमण जग जीपता, छ दो मासी रे जान । तीन अढाई दो दो किया, दो दोय मासी वखान ॥ व० ५ ॥ भद्र महाभद्र शिवगति जाणिये, उत्तम एहना प्रकार । वीच में स्वामी नहिं कियो, नहीं कियो चौथो आहार । व० ६ ॥ तिहुँ उपवासे प्रतिमा बारमी, कीधी बारे जी मास । दोय सौ वेला जिणजीरा, जाणिये इण गुण तीस विलास ॥व० ७॥ तीन सौ पारण जिनजीरा, जाणिये तीन गुणतीस पचास । एह में स्वामी केवल पामिया, पाम्या मुगति आवास ॥ व० ८॥
कलश इम वीर जिनवर सयल सुखकर, अतिह दुक्कर तप करी। संयमसू
ได้ใจ ไพจใจ ในใจใจไไดไดไไดไจไว้ใจได้ใจไวจจใสไอได้ใสใจในใจไว้ให้ใจใจใสไดได้ใจใคใจไกในใจจใจใกไoในใจใจใสใจไว้ใจได้ใจไ666ใจไไดไจใจไดใจใจไดไไดไไไไไไไไไไไไไไไไไไไไไไปงไง
AALAAITAslel
4