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మదురంటున్నందుకు నడవనందమూడవ
स्तवन-विभाग
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স্বপ্ন স্বল্পৰ্বস্বস্বত্বখশরুম্মম্বম্বশ্বরু
पाले हो मन आण विवेक । इण विधि रोहिनी आदरे, ते पामे हो आनन्द अनेक ॥ तप० २१॥
(धर्म करो जिणवर तणो) इम महिमा रोहिनि तणी, श्री ज्ञानी गुरु परकासे रे। चित्रसेन ने रोहिनी, वासुपूज्य तीर्थंकर पासे रे ॥ त० २२ ॥ इण परि रोहिनी आदरी, ऊपर उजमणो कीधो रे। चित्रसेन ने रोहिनी, मन सूधे संजम लीधो रे ॥ त. २३ ॥ आठे पुत्रे आदरी, दीक्षा बारम जिन आगे रे। वलि नानाविध तप तपे, धरमतणी मति जागे रे । त० २४ ॥ करि अनसन आराधना, लहि केवल शिव पद पाया रे। जिनवाणी आणी हिये, प्रभु चित लाया रे ॥ त० २५ ॥ मनमोहन महिमा निलो, मैं तवियो शिवपुर गामी रे । मन मान्या साहिब तणी, हिव पुण्य सेवा पामी रे ॥ त० २६ ॥
कलश इम गगन दुग मुनि चन्द्र वरसे* चौथ श्रावण सुदि भली । मैं कही रोहिनी तणी महिमा, सुगुरु मुख जिम सांभली ॥ वासुपूज्य अमने थया सुप्रसन्न, चित्त नी चिन्ता टली । श्री सार जिन गुण गावतां, हिव सकल मन आशा फली ॥२७॥
श्री रोहिणी तप की स्तुति जयकारी जिनवर वासुपूज्य अरिहंत । रोहिनि तपनो फल भाख्यो श्री भगवंत ॥ नरनारी भावे आराधो तप एह । सुख संपति लीला लक्ष्मी | पावें तेह ॥१॥ ऋषभादिक जिनवर रोहिनि तप सुविचार । जिन मुख | परकासे बैठी परखदा बार ॥ रोहिनि दिन कीजे रोहिनीनो उपवास । मन | वंछित लीला सुन्दर भोग विलास ॥२॥ आगम में एहनो, बोल्यो लाभ . अनंत। विधिसूं परमारथ साधे सूधो संत ॥ दुख दोहग तेहनो, नासि जाय | सब दूर । वलि दिन दिन अंगे, बाधे अधिको नूर ॥३॥ महिमा जग मोटो रोहिनि तप फल जान, सौभाग्य सदा जे पावें चतुर सुजान ॥
* यह स्तवन १७२० श्रावण सुदी ४ को बना है।
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খ - স্বশস্থক্ষণ"
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