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जैन-रत्न
॥ चाल ॥
हिव राजा रे पुत्रतणें शोके करी, थयो मूरछित रे रोवे अति ख्या भरी । पडतो सुता रे सासण देवता झालियो, कंचनमय रे सिंहासन बेसा - रियो || बेसारियो कर जोड आगे करे नाटक देवता, गोदी खिलावे के हँसावे पाय पंकज सेवता । ऊपनो भूपतिने अचंभो देखिए कारण किसो, जो कोई ज्ञानी गुरु पधारे पूछिये सांसो इसो ||१३|| चिन्तवतां रे चारत्रिया आया जिसे, राजा पिण रे पहुतो वन्दन ने तिसे । सुण देशना रे पूछे प्रश्न सोहामणो, कहो स्वामी रे पूरबभव बालक तणो ॥ बालक तणो भव भूप पूछे कहे इण पर केवली, रोहिणी राणी नो भवान्तर अने राजा नो वली । श्री गुरू पासे पाछले भव रोहिणी तप आदरयो, तप तणें सगते साधु भगते विधि तुम्ह भवसागर तर यो ॥ १४॥ कहे राजा रे रोहिणी तप किम कीजिये, भाखो रे जिम तुम पासे लीजिये । तब मुनिवर रे विधि रोहिणी रातप तणी, इम जम्पे रे चित्रसेन राजा भणी ॥ राजा भणी विधि एह जम्पे चन्द्र रोहिणि तप आविये, उपवास कीजे लाभ लीजे भली भावना भाविये । बारमा जिणवर तणी प्रतिमा पूजिये मन रंग सूं, इम सात बरसां लगे कीजे तजी आलस अंगसूं ॥ १५॥
वीर सुनो मोरी वीनती
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तप करिये रोहिणी तणो, वलि करिये हो ऊजमणो एम । तप करतां पातक टले तिण कीजे हो तप सेती प्रेम ॥ १६ ॥ देव जुहारी देहरे, तिण आगे हो कीजे वृक्ष अशोक । गुण नो बारम जिण तणो, भला नैवेद्य हो धरिये सहु थोक ॥ तप० १७ ॥ केशर चन्दन चरचीये, कीजे आगे हो आठे मंगलीक । विधिसूं पुस्तक पूजीये, ते पामे हो शिवपुर तहतीक || तप० १८ ॥ सेवा कीजे साधु नी, बलि दीजे हो मुंह मांग्या दान | संतो सीजे साहसी, मनरंगे होकर कर पकवान ॥ तप० १९ ॥ पाटी पोथी पंजनी, मिस लेखण हो झिलमिल सुजगीस। नवकरवाली धीरणा, गुरु आगे हो धरो सत्ताईस ॥ तप० २० ॥ चौथो व्रत पिण तिन दिने, इम