SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 575
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ IgrahtakaTekkshaktishatoskakkharokarternatakarketant Arke ... . स्तवन-विभाग .. ... ... ... .. . ५५१ Allakikthakhaderalrakakirtaliatraddhakikaticleshodiekelinadrinkcidaislikeakleeablairland aurantattstor-latest-Transistantratak-AAREERIARREST-KathREATREKKERARAKSHAK insistarhth tottotophatarkatite जिणने परनाऊं, आंख्या आगल साल वधे तिण चयन न पाऊं । देश देश ना राजवी ए ततखिण तेडाया, सबल सजाई साथ करी नरपति पिण आया ॥५॥वीत शोक राजा तणो ए छः कुमर सोभागी, कन्या केरी आंखड़ी ए तिण सेती लागी । ऊभा देखे सकल लोक चढ़िया केइ पाला, चित्रसेन रे कण्ठ ठवी कुमरी वर माला ॥६॥ देव अने देवांगना ए जपे जयजयकार, रलियायत थयो देखने ए सारो संसार । करजोड़ी कहे लोक वखत कन्यारो ४ जाडो । वीत शोक नो कुमर थयो सिर ऊपर लाडो ॥७॥ इम विवाह थयो भलो ए दिया दान अपार, घर आया परणी करी ए हरख्यो परिवार । वीत शोक निज पुत्र भणी आपणो पाट दीधो, आपण संजम आदरी ए जगमें जस लीधो ॥८॥ प्रभु प्रणमं रे पास जिणेसर थंभणो तिण नगरी रे चित्रसेन राजा थयो, सुखमाहे रे केतलो काल वही गयो । इण अवसर रे आठ पुत्र हुवा भला, चढ़ते पख रे चन्द्र जिसी चढ़ती कला ॥ चढ़ती कला हिव राय बैठो पास बैठी रोहिणी, सातमी भूमी | कन्त सेती करे क्रीडा अति घणी । आठमो बालक गोद ऊपर रंगसू राणी लियो, पुत्रने प्रीतम आंख आगल देखतां हरखे हियो ॥९॥ इक कामण रे गोख चढ़ी दृष्टे पड़ी, शिर पीटे रे दीन स्वरे रोवे खड़ी। बूढा पण रे मन गमतो बालक मूओ, हूं एकज रे तिण अधिकेरो दुख हुओ ।। दुःख हुओ देखी रोहिणी हिव कहे प्रीतम इम भणी, ए नार नाचे अने कूड़े कहो किम मोटा धणी । एहवो नाटक आज तांइ मैं कदे देख्यो नहीं, मुझने तमासो अने हांसो देखतां आवे सही ॥१०॥ इण वचने रे रीसाणो राजा कहे तू पापण रे परनी पीडा नवि लहे, ए दुखनी रे पुत्र मुए तडपड करे। जब बीते रे वेदना जाणीजे तरे ॥११॥ ॥ उल्लालो॥ जाणे तरे तूं बात दुख नी गरब गह ली कामिनी, इम कही राजा, हाथ झाल्यो तेहना बालक भणी । सातमां भय थी तले नाख्यो, तिसे । । हाहारव थयो, रोहिणी हंसती कहे प्रीतम, पुत्र नीचे किम गयो ॥१२॥ dalieki-kabirkirimaalkolai-holesteroloristartsleaterial-elastralialistasiAwaalatialstelmistant ras
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy