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स्तवन-विभाग चेलणा, रूप देखी हो चित चूका जेह । समवसरण साधु साधवी, ते कीधा
हो आराधक तेह ॥ वीर० १३ ॥ ब्रत नहीं नहीं आखड़ी, नहीं पोसो ही में नहीं आदर दीख । ते पिण श्रेणिक राय ने, ते कीधो हो सामि आप
सरीख ॥ वीर० १४ ॥ इम अनेक ते उधरया, कह तोरा हो केता अवदात । सार करो हवे माहरी, मन माहे हो आणो मोरडी बात ॥धीर०१५॥ सूधो संजम नवि पले, नहीं तो हुवो हो मुझ दरसण ज्ञान । पिण आधार छे एतलो, एक तोरो हूं धरूं निश्चल ध्यान ॥ वीर० १६ ॥ मेह महीतल वरसतो, नवि जावे हो रुक विषमी ठाम । गिरुआ सहिजे गुण करे, स्वामी | सारो हो मोरा वांछित काम ॥ वीर० १७ ॥ तुम नामें सुख सम्पदा, तुम - नामें हो दुख जावे दुर । तुम नामें वांछित फले, तुम नामें हो मुझ आणंद पूर ॥ वीर० १८ ॥ इम नगर जेसलमेर मंडण तीर्थंकर चौबीसमो, शासनाधीश्वर सिंह लंछन सेवता सुर तरु समो । जिणचन्द त्रिशला मात नंदन सकल चन्द कला निलो, वाचनाचारज समय सुन्दर संथुण्यो त्रिभुवण तिलो । वीर० १९॥
निर्वाण कल्याणक स्तवन मारग देशक मोक्षनो रे, केवल ज्ञान निधान । भाव दया सागर प्रभू रे, पर उपकारी प्रधानो रे । वीर प्रभू सिद्ध थया, संघ सकल आधारो रे । हिव इण भरत मां कुन करसी उपगारो रे । वीर० १॥ नाथ बिहूणी सैन्यजू रे, वीर बिहूणो रे संघ । साधे कुण आधार थी रे परमानन्द अभंगो रे॥ वीर० २ ॥ मात बिहूणा बालज्यू रे, अरहो पर अथठोय । वीर विहूणा जीवडा रे, आकुल व्याकुल थाये रे । वीर० ३ ॥ संशय छेदक
वीर नो रे, विरह ते केम खमाय । जे दीठे सुख ऊपजे रे, ते विण किम E रहिवायो रे ।। वीर० ४॥ निर्यामक भव समुद्र नो रे, भव अटवी सत्थ
वाह । ते परमेशर बिन मिल्यां रे, किम बाधे उच्छाहो रे ॥ वीर० ५ ॥ वीर थकां पिण श्रुत तणो रे, हुतो परम आधार । हिवणा श्रुत आधार छे रे, एह जिन आगम सारो रे । वीर० ६ ॥ इण काले सब जीव ने रे, आगम
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