________________
प्र
स्तवन-विभाग
५३६
उपशम श्रेणि चढ़े जे नर हुवे उपसमी, क्षपक श्रेणि क्षायक प्रकृति दश
क्षय गमी ||२३|| तिहां चढता परिणाम अपूरव गुण लहे, अहम नाम अपूरव करण त्रिणी कहे । सुकल ध्याननो पहिलो पायो आदरे, निरमल मन परिणाम अडिगा धरे ||२४|| हिव अनिवृत करण नवमो गुण जानिये, जिहां भाव थिर रूप निवृत्ति न मानिये । क्रोध माया संजलणा हणें, 1 उदे नहीं जिहां वेद अवेद पणों तिणें ||२५|| जिहां रहे सूखम लोभ कहांइक शिव अभिलखे, ते सूखम संपराय दशम पंडित देखे । संत मोह इण नाम इग्यारम गुण कहे, मोह प्रकृति जिण ठाम सहु उपसम लहे ||२६|| श्रेणि चढ्यो जो काल करे किणही परे, तो थाये अहमिन्द्र अवर गति नादरे । चार वार सम श्रेणि लहे संसार में, एक भवे दोय श्रेणि अधिक न हुवे कि ||२७|| चढ़ि इग्यारम सीम सभी पहिले पडे, मोह उदय उत्कृष्ट अरध पुद्गल रडे | क्षपक श्रेणि इग्यारम गुण ठाणो नहीं, दशम थकी बारम्म चढ़े ध्यानें रही ॥२८॥
( एक दिन कोई मगध आयो पुरंदर पास ) खीण मोह नामें गुण ठाणो बारम जान, मोह खपायो नेडो आयो केवल ज्ञान । प्रगट पणे जहां चारित्र अमल यथा ख्यात । हिव आगे तेरम गुण ठाण तणी कहे बात ||२९|| घातिय चौकड़ी क्षय गई रहीय अघातिय एम, प्रकृति पिच्यासी जेहनें जूना कापड़ जेम | दरसण ज्ञान वीरज सुख चारित पंच अनंत, केवल ज्ञान प्रगट थयो विचरे श्री भगवंत ॥३०॥ देखे लोक अलोकनी छानी परगट बात, महिमावंत अठारे दूषण रहित विख्यात । आठे वरसे ऊणी कही इक पूरव कोड़ी, उत्कृष्टी तेरम गुण ठाणिए थित जोडि ||३१|| सैलेसी करण निरूध्या मन वच काय, तेण अयोगी अंत समइ सहु प्रकृति खपाय | पांचे लघु अक्षर उचरंता जेहनो मान, पंचम गति पामें शिवपद चउदम गुण ठान ||३३|| श्रीजे वारमें तेरमें मांहें न मरे कोइ, पहिलो बीज चौथो पर भव साथै होइ । नरक देवनी गति मांहे लोभे पहिला चार, धुरला पांच तिरी मांहिमणुए सर्व विचार ||३३||
★
पुल प्रमुक्तक हुन