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स्तवन-विभाग रिपु जीपतो ए ॥२॥ वामा तसु धरि नार ए, तमु गुणहि न लब्भे पार ए। तासु उदर अवतार ए, तसु अतिसय रूप उदार ए ॥३॥ चवद सुपन तिण
निसि लह्या ए, अनुक्रम करि ते सहु मन गह्या ए। पूछे भूपति ने कह्या 1ए, कर जोडि कह्या जे जिम लह्या ए ॥४॥ प्रथम सुपन गज निरख्यो, | माय तणो मन हरख्यो । बीजे वृषभ उदार, धरणी जिण धरयो भार ॥५॥ | तीजे सिंह प्रधान, जसु बल कोई न मान । चउथे देखी श्री देवी, कमल 1 बसे सुर सेवी ॥६॥ पांचमे पुष्फनी माला, पंच वरण सुविशाला । छडे दीठो
ए चन्दो, ग्रहगण केरो ए इन्दो ||७|| सातमे सूरज सार, दूर कियो अन्धकार । आठमें धजह लहकती वरण विचित्र सोहन्ती ॥८॥ नवमें पूरण कुम्भ भरियो निरमल अंभ । देखि सरोवर दशमें, मनह थयो अति विशमें ॥९॥ समुद्र इग्यारमें ठामें, खीर जलधि जसुनामें । बारम देव विमान, वाजिन
ध्वनि गीत गान ॥१०॥ तेरम रतननी रासी, दह दिशि ज्योति प्रकाशी । * सुपन चवद में ए दीठो, पावक धूम थि मीठो ॥११॥ सुपन कह्या सुविचार,
हरख्यो भूप उदार । पुत्ररतन होस्ये ताहरे, थास्ये उदय हमारे ॥१२॥ चवद सुपन श्रवणे सुणी, हरख कियो सुविचार | सुन्दर सुत तुमे जनमस्यो, कुल दीपक आधार ॥१३॥ वामा प्रीतम वचन सुनी आवी मन्दर झत्ति, देव सुगुरु कीरति करी, जनम कियो सुकयत्थ ॥१४॥ इण अनुक्रमि ऊग्यो दिवस, कीधा सुपन विचार । ते घरि पहुंता आपणे, दीधा दान अपार ॥ ॥१५॥ हिव जनम्या जग गुरू जगत हुओ जयकार, खिण इक नारकिये पायो सुख अपार । दिशि कुमरी मिलकर सूत्र करम निशि कीध, करि थानक पहुंती वंछित तेहनो सीध ॥१६॥ तिण हिज निशि चौसठ इन्द्र मिली तिहां आवे, लेई निज भगते सुर गिर स्नात्र करावें । करि जनम महोच्छव जननी पासे ठावे, तिहाथी सुर सब मिली दीप नंदीसर जावें॥१७॥ इम रयण विहाणी ऊगो दिवस उदार, घर घर गाईजे कीजे मंगलाचार । . इग्यारम दिवसे मिली सहू परिवार, तसु नाम दियो श्री उत्तम पास कुमार
॥१८॥ प्रभु बाधे दिन दिन कला करी जिम चन्द, त्रिहूं ज्ञान विराजित रूप जिसो देविन्द । गुण कला विचक्षण विद्या तणोय निधान, यौवन वय
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