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AMERADESH
RAMANEPAR+
जैन-रत्नसार मां ज्ञान वखाणू ज्ञान ना पांच प्रकार रे। मति श्रुति अवधि अने मन पर्यव, केवल ज्ञान श्रीकार रे ॥ पं० २॥ मति अट्ठावीस श्रुत चउदह वीस, अवधि छे असंख्य प्रकार रे । दोय भेद मन पर्यव दाख्यो, केवल एक उदार रे ॥ पं० ३ ॥ चन्द्र सूर्य ग्रह नक्षत्र तारा, तेज सुं तेज आकाश रे । केवल ज्ञान समू नहीं कोई, लोकालोक प्रकाश रे ॥ पं० ४ ॥ पारसनाथ पसाय करी ने, माहरी पूरो उमेद रे। समय सुन्दर कहे हूं पण पामू, ज्ञान नो पंचमो भेद रे ॥ पं०५॥
अष्टमी स्तवन अमल कमल जिम धवल विराजे, गाजे गौडी पास । सेवा सारे जेहनी सुर नर, मन धरिये उल्लास ॥१॥ सोभागी साहिब मेरा वे, अरिहा सुज्ञानी पास जिणंदा। सुन्दर सूरति मूरति सोहे, मो मन अधिक सुहाय पलक पलक में पेखतां मानु, नव नवि छबि देखाय ॥२॥ भव दुःख भंजन जन मन रंजन, खंजन नयन सु रंग। श्रवणें सुणी गुण ताहरा, महारा विकस्या अंगो अंग ॥३॥ दूर थकी हूं आयो वहिने, देव लह्यो दीदार । प्रारथियां पहिडे नहीं, साहिबा एह उत्तम आचार ॥४॥ प्रभु मुखचन्द विलोकित हरषित, नाचत नयन चकोर । कमल हसे रवि देखिने, जिम जलधर आगम मोर ॥५॥ किसके हरिहर किसके ब्रह्मा, किसके दिलमें राम । मेरे मनमें तूं बसे, साहिब शिव सुख नो ही ठाम ॥६॥ माता वामा धन्य पिता, जसु श्री अश्वसेन नरेस । जनमपुरी बाणारसी, धन धन काशी नो देश ॥७॥ संवत् सतरेसे चावीसें, वदि वैशाख वखान । आठम दिन भले भावसं, म्हारी यात्र चढ़ी परिनाम ॥८॥ सांनिधकारी विघ्न निवारी, पर उपगारी पास, श्री जिनचन्द जुहारतां, मोरी सफल फली सहु आस ॥९॥
दशमी वृद्ध स्तवन पास जिनेसर जगति लोए, गबड़ी पुर मण्डण गुण निलोए । तवन करिस प्रभुताहरो ए, मन वंछित पूरो माहरो ए ॥१॥ नयरी नाम बणारसि ए, सुर नयरी जिम रिद्धे बसि ए । तेण पुरी छे दीपतो ए, अश्वसेन राजा