________________
स्तवन-विभाग
५३३
खरचो घणो । ए अवसर रे आवतां बलि दोहिलो, पुण्य जोगें रे धन पामंतां सोहिलो ॥ सोहिलो बलिय धन पामतां पण, धर्म काज किहां बली । पांचमी दिन गुरु पास आवी, कीजिये काउसग्ग रली ॥ त्रण ज्ञान दरसन चरण टीकी, देइ पुस्तक पूजिये थापना पहिली पूज केशर, सुगुरु सेवा कीजिये ||१६|| सिद्धान्तनि-रे पांच परति विटांगणा, पांच पठारे मखमल सूत्र प्रमुख तणां । पांच डोरा रे लेखण पांच मजीसणा, बासकूपा रे कांबी चारू वरतणां ॥ वरतणां वारू वलिय कमली, पांच झिलमिल अति भली । स्थापना चारज पांच ठवणी, मुहपत्ति पड़ पाटली ॥ पट सूत्र पाटी पंच कोथल, पंच नवकर बालियां । इन परे श्रावक करे पांचमि, उजमणें उजवालियां ॥१७॥ वलि देहरे रे स्नात्र महोत्सव कीजिये, घर सारू रे दान वली तिहां दीजिये । प्रतिमानी रे आगल ढोवणां ढोइये, पूजानों रे, जे जे उपगरण जोइये || जोइये उपगरण देव पूजा काज कलश शृङ्गार ए, आरती मङ्गल थाल दीवो धूपदाणूं सार ए । घन सार केशर अगर सुखड अंगलूहणं दीस ए, पंच पंच सघली वस्तु ढोवो सगति सं पचवीस ए ॥१८॥ पांचमीता रे सहमी सर्व जिमाड़िये, रात्रि जोगें रे गीत रसाल गवाडिये । इम करनी रे करतां ज्ञान आराधिये, ज्ञान दरसन रे उत्तम मारग साधिये ॥ साधिये मारग एह करनी ज्ञान लहिये निरमलो, सुरलोक में नरलोक मांहे ज्ञानवंत ते आगलो । अनुक्रमें केवल ज्ञान पामी सासता सुख जे लहे, जे करे पंचमि तप अखंडित वीर जिनवर इम कहे ||१९||
कलश
इम पंचमी तप फल प्ररूपक, बर्द्धमान जिनेसरो। मैं थुण्यो श्री अरिहंत भगवन्, अतुल बल अलवेसरो ॥ जयवंत श्री जिनचन्द्र सूरज, सकल चन्द्र नमंसियो । वाचना चारज समय सुन्दर, भक्ति भावे प्रशंसियो ||२०||
पञ्चमी स्तवन
पंचमि तप तुम करो रे प्राणी, जिम पामो निर्मल ज्ञान रे । पहलू ज्ञान ने पाछे किरिया, नहीं कोई ज्ञान समान रे || पं० १ ॥ नंदीसूत्र