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स्तवन- विभाग
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हम गुण काली कोयली जी, प्रभु गुण आंबा मोर । मांजर के परताप से कांइ, करवा लागी सोर || निरं० ३ || तुम हो मोतियन की लड़ी रे, हम गुण अंडा भोर । रूपचन्द दिलदार मया कर, तुम बिन, देव न और || निरं० ४ ॥
सरस राग
॥ राग खम्बाच ॥
समरण कर ले करम सब हरले
घड़ि घड़ि पल पल छिन छिन निशदिन प्रभु को रे ॥ घ० ॥ प्रभु समरण से पाप कटत हैं, अशुभ रे ॥ घ० १ ॥ मन वच काय लगी चरणन नित, ज्ञान हिये में घर ले रे ॥ घ० २ || दौलतराम प्रभू गुण गावे, मन वंछित फल वरले रे ॥ घ० ३ || राग मल्हार
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चहुँ ओर बदरिया वरसे, अब घरर घरर घन गरजे ॥ नेम प्रभू गिरनार सिधारे, देखन कूं जिया तरसे ॥ चहुँ १ ॥ दादुर मोर शोर सुन श्रवणें, नयन भए घन जरसे ॥ चहुँ० २ ॥ ढूंढ़त ढूंढ सकल वन वन में, कबहुं पिया नहिं दरसे || चहुँ० ३ || सो दिन सफल जानेंगे सजनी, दिवस घड़ी जिन फरसे ॥ चहुँ० ४ ॥
राग झिंझोटी
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यह अरजी मोरी सहियां, मोहि तार लो गह बहियां । मैं नांहि जानूं सहियां, यह अरजी मोरी सहियां ||१|| मैं तारण तरण सुण्यो छे, मैं यातें शरण गहियां । इन तें उबार लहियां, ये अरजी मोहि० २ || इन करमन के बस होय के, मैं भटक्यो चहुं मैं नाहि जानं सहियां, यह अरजी मोरी सहियां ॥ मोहि० ३ ॥ हित करके दास निहारे, कर जोडि पड़ी हूँ पइयां । शिव देत क्यों ना सहियां मोहि तार लो गह बहियां ॥ ये ० ४ ॥
मोरी सहियां ॥ गति महियां ।
राग अडाणो
मोतियन की माला जिन गल सोहे । मस्तक मुकुट सोहे मन मोहन,
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