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गणप्रयन्त्रणमननश्रयणप्रत्रप्रप्रय ग्रनन्यप्राणप्रयागपत्रमाणप्रत्रमन्त्र प्रगणनयनपत्रण प्रयग्रामयणप्रणमननयमनप्रणप्रत्रणमननननननन
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जैन-रनसार कुण्डल लागत वाला ॥ जिन० १ ॥ भजो रे भजो तुम लोक सहिर के, नहीं भजे सो काला । माणक पर प्रभु महिर करो तो अपना बिरुद संभाला ॥ जिन गल. २॥
राग सोरठ म्हानू प्यारो लागे छ जी थारो उपदेश। ज्ञान जगावण अवगुण मेटन, संशय रहे न लेस ॥ म्हानू १ ॥ मोह तिमिर दुःख दूर करन कुं, भगत बढ़ावत हेत । चन्द फते नित येही चाहे, समकित सुख कू खेत ॥ म्हानू॥
राग मल्हार वरषित वचन झरी हो सुगुरु मेरो । श्री श्रुतज्ञान गगनतें उमटी, ज्ञान घटा गहरी ॥ हो सुगुरु० १ ॥ स्याद्वाद नय विजुली चमकत, देखत कुमति डरी । अरथ विचार गुहर धुनि गरजित, रहत न एक घरी ॥ हो । सुगुरु० २ ॥ श्रद्धा नदी चढ़ी अति जोरे, शुद्ध सुभाव धरी । सुभर भरयो सुमता रस सागर, समकित भूमि हरी ॥ हो सुगुरु० ३ ॥ प्रगटे पुण्य अंकूरे चहुं दिस, पाप जवास जरी । चातक मोर पपइया भविजन, बोलत भक्ति भरी ॥ हो सुगुरु० ४ ॥ दया दान व्रत संजम खेती, भविक किसान करी। हरखचन्द सुर नर शिव सुख की, सहज स्वभाव करी ॥ हो सुगुरु० ॥ ५॥
राग काफी बाबा केशरिया विराजे धुलेवा मैं डारूं गुलाल मुट्ठी भरके, मैं डारूं गुलाल झोली भरके। चोवा चावा चन्दन और अरघ जल, केशरकी गागर भरके ॥ बा० १॥ मस्तक मुकुट और जुग कुण्डल, आंगी जड़ाऊ झला झलके ॥ बा० २ ॥ बांहे बाजू वन्ध वहिरख विराजे, फूलन के गजरे सरके ॥ बा. ३ ॥ नाभिराया मरुदेवी को नन्दन, रमिये भवि आदेशर से ॥ बा. ४॥ आदि खान है दास तुमारो, तार लियो अपनो करके ॥ बा० ५॥
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