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जैन-रत्नसार
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हाथ धरायो रे ॥ पजूसण. ६ ॥ घर ले जावो रात्री जगावो, ज्ञान की भक्ति करावो रे । सर्व शहर में फिर कर, गुरुके पासे लावो रे ॥ प० ७॥ कल्पसूत्र की पूजा करके, वाचना नव को सुन ले रे । मधुरी वाणी गुरु मुख प्राणी, अमृत पी लो रे ॥ पजूसण० ८ ॥ जिन चरित्र ने और
पट्टावली, समाचारी भावे रे। तीन अधिकार आदि से सुने, वो मुक्ति में * जावे रे ॥ पजूसण. ९ ॥ अट्ठाई उपवास करो भवि, बड़े कलप को बेलो
रे। संवत्सरी को तेलो करके, बारसे झेलो रे ॥ पजुसण० १० ॥ मूल पाठ को एक चित सुणने, चैत्यप्रवाडी में जावो रे। मोहन मुद्रा जिनवर निरखी, अति हरखावो रे ॥ पजूसण० ११ ॥ अभय अमारी पटह बजावो, दान सुपात्रे देवो रे । अनुकम्पा कर जीवों ऊपर प्रेम जगावो रे ।।५० १२॥ नव विध ब्रह्म गुप्ति को धारो, भावना सुध मन भावो रे। दोय टंक पडिकमण करीने, पाप भगावो रे ॥ पजूसण० १३ ॥ संवत्सरी पडिकमणों करिने, जीव चौरासी खमावो रे । अपराधी को माफी देकर, अति हरखावो रे॥ पजूसण० १४ ॥ तिवरी गाम चौमासे रहकर, पर्व पजूसण ध्याया रे । संवत् उन्नीसे अस्सी वर्षे, पूज्य हरि गुण गाया रे ॥ पजूसण० १५ ॥
शान्ति जिन स्तवन शान्ति दान्ति क्रान्ति सोहे, शान्ति सुखकार रे । विश्वसेन तात मात, अचिरा मंडार रे ॥ लंछन कुरंग रंग, सोवन सुचार रे॥ शा० १॥ वंश है इक्ष्वाकु हस्ते, नाग अवतार रे। पंचमो चकी सही, सोलमे सुचार रे॥ शा० २ ॥ भविक तरण तरि, अरि अपहार रे। श्री जिन लाभ ध्यायो, पायो भव पार रे । शा० ३॥
॥ पुनः राग ॥ निरंजन साइयां रे, सांइ मेरा टुक सा मुजरा लेत ॥ निरं० ॥ तुम तीरथ के देवता जी, हम केशर दा बोल । कनक कचोली हाथ में जी, पूजा करूं रंग रोल ॥ निरं० १॥ तुम अम्बर दा मेहला प्रभु, हम गिरिवर दा मोर । रिमझिम रिमझिम मेहला वरसे, ठम ठम नाचे मोर ॥ नि० २॥
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