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जैन-रनसार वीर० ४ ॥ शक्र स्तवे पुरषोत्तम, तेथीते प्रभु गर्भ उदर लाल रे। गर्भ नीच इपसद अधम कहे, प्रभु निंदा ए होवे नीच लाल रे । वीर० ५॥ गर्भाधान कल्याण श्रेय छ, पंचकल्याण मझार लाल रे । न गर्भ नीच अकल्याणक का, तो किम विरुद्ध उच्चार लाल रे ॥ वीर० ६ ॥ देवानंदा कूख थी त्रिशला कूखे, गर्भ धारण श्रेय रूप लाल रे। इंद्रे ते निश्चय मानिये, न मान अकल्याण रूप लाल रे ॥ वीर० ७ ॥ तूं मानूं कल्याण फल माता का, होरी तीर्थकर तुम पूत लाल रे। विप्रकुल नीच ऋष निंद्य दाखवी, ताते अकल्याणक भूत लाल रे ॥ वीर० ८ ॥ कल्याण ते श्रेय भाखियूं, श्रेयने कल्याण फल जाण लाल रे। नीच अवरणा वादे वीर नं, मानतो म्हारूं कल्याण लाल रे ॥ वीर० ९ ॥ जे दिन विप्रकुले आविया, माने अच्छेरूं शुभ कल्याण लाल रे। ते क्षत्रीकुले वीर किम होवे, नीच अशुभ अकल्याण लाल रे ॥ वीर० १० ॥ कल्पे ते शुभ समृद्धि कही, अणंत आववं कल्याण लाल रे । ते विप्र सिद्धारथ कुले थy, वलि विप्र मोक्ष कल्याण लाल रे ॥ वीर० ११ ॥ च्यवन इन्द्रने जाण्यं धीर नं, तो उच्छव किहां मंडाण लाल रे । मोक्षे अंधारूं डाणां गमां, पणमानी जे कल्याण लाल रे ॥ वीर० १२ ॥ जिनचन्द्र* वीर वियोग थी, मोहथी थाय दुःख शोक लाल रे । देवा नन्दा गौतमने, जिम ले जो कल्याण मोक्ष एक लाल रे । वीर० १३ ॥
वीर जिन स्तवन
(आज महोच्छव रंग रली री) जायो सुत त्रिशला दे रानी, कामित पूरन काम कली री ॥ आ० १॥ सजि सिणगार सकल सुर वनिता, अपने अपने मेल चली री। आवत सिद्धारथजी के आंगन, पूरी मोतियन चौक पूरी री ॥ आ० २॥ इंद्राणी मिल मंगल गावत, नाटक नाचत सुरकुमरी री । बाजत ताल मृदंग सुरप
* यह स्तवन जं० यु० प्र० बृ० भट्टारक श्री पूज्यजी श्री जिन चन्द्रसूरिजी महाराज ने बनाया है।
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ग्राम गणतानियनत्रणवश्वकर