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स्तवन-विभाग
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ननथनमननयन्त्रणप्रत्रनप्रणप्रत्रणमनप्रमाणपत्रपत्रणभत्रनवन श्रवणश्रममननत्र
- तनी, बेना बीन बोचंग वली री ॥ आ० ३ ॥ इन्द्र हुकुम कर धरणिंद
पठायो, सब वसुधा धन धान्य भरी री। कनक रजत मनि पंच वरन के, कुसुम विखेरत गलिय गली री ॥ आ० ४ ॥ जय जयकार भयो । जिनशासन, व्याधि व्यथा सब विपति हरी री। हरखचंद जनम्यो प्रभु मेरो, मनकी आशा सफल फली री ॥ आ० ५ ॥
राग भैरवी वीर प्रभु तेरी दोस्तीमें, मेरी सुमता सखी मेहरबान भई रे। आप नहीं आवे बहूधा पठावे, तेरी सूरत कुरबान भई रे । वीर० १॥ शासननायक यही अरज है, दीजे दरस, बड़ी देर भई रे। आस दास की पूरण कीजे, चरण सरण लपटाय रही रे ॥ वीर० २ ॥
चौबीस जिन स्तुति ___ पहिलो श्रीऋषभेसर प्रणमं, दुजो अजिय जिणेसर देव । संभव अभिनन्दन सुखदाई, सुमति सुमति सुर सारे सेव ॥१॥ पदम प्रभु जिन अधिक पंडूर, श्री सुपासचन्द्र प्रभु स्वामी। सुविधि शीतल श्रेयांस सवाई, नित प्रणम वासुपूज्य सिर नामी ॥ प० २ ॥ विमल अनन्त सदा वरदाई, धर्म शान्ति कुन्थु अर धरि रागें। मल्लिनाथ तेजी मुनि सुव्रत, नमि नेमि सदा दुखते वारे, ताके नमूं पाये लागें ॥ ५० ३ ॥ परतिख जेहनो दीसे परचो, पुरसा दाणी समरूं पास । वर्द्धमान चउवीसम जिनवर, जगि जागे जेहनो जस वास ॥ प० ४॥ परम पुरुषनां नाम जपंतां, कीधा करम
खपे लख कोडि । भाव सहित उठि परभाते, जिन रंग* सूरि नमें कर । जोडि ॥ प० ५॥
सीमंधर जिन स्तवन श्री सीमंधर साहिबा, वीनतडी अवधार लाल रे । परम पुरुष परमेसरूं आतम परम आधार लाल रे ॥ श्री. १॥ केवलज्ञान दिवाकरूं, भांगे
* यह स्तवन जं० यु० प्र० पृ० भट्टारक श्री पूज्यजी श्रीजिन विजय रंग सूरिजी महाराज का बनाया हुआ है।
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కార్యా లు దాస్యం కాదు కదా రామ పరంధాతృణాం