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स्तवन-विभाग
॥ दोहा ॥
विधन विदारन यक्ष जगि, तेहनो सकल स्वरूप । प्रीति करे श्री संघ ने, देखाडे निज रूप ||३९|| गिरुओ गौडी पास जिन, आपे अस्थ भंडार । सांनिध करे श्री संघ ने, आशा पूरणहार ॥४०॥ नील पलाणे नील हय, नीलो थई असवार | मारग चूका मानवी वाट दिखावनहार ॥ ४१||
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॥ ढाल ॥
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चरण अढार तणों लहे भोग, विघन निवारे टाले रोग समरे जे जाप, टाले सगला पाप संताप || २ || निरधन नो सूत, आपे अपुत्रिया ने पूत । कायर ने सूरापण घरे, पार
वरे ||४३|| दो भागी ने दे सो भाग, पगविहूणा ने आपे नहीं तेहने दे ठाम, मन वंछित पूरो अभिराम || ४ ||
आधार, भवसागर ऊतारे पारे । आरतियानी आरत भंग, धरे ध्यान ते लहे
पवित्र थई
घरि धन नो
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उतारे लच्छी
पाग । ठाम निराधारा ने दे
सुरंग || ४५|| समरयां सहाय दीजे यक्षराज, तेहना मोटा अछे दिवाज । बुहीन ने बुद्धि प्रकाश, गंगा ने दे वचन विलास ||४६ || दुखियाने सुख
नो दातार, भय भंजन रंजन अवतार । बंधन तूटे वेडी तना, श्री पार्श्व
नाम अक्षर समरणा ||४७||
॥ दोहा ॥
श्री पार्श्वनाम अक्षर जपे, विश्वानर विकराल । हस्ति युद्ध दूरे टले, दुद्धर सिंह सियाल ॥४८॥ चोर तणां भय चूकवे, विष अमृत उडकार । विषधरनो विष ऊतरे, संग्रामें जय जयकार ||४९ || रोग शोक दारिद्र दुःख, दोहरा दुर पलाय । परमेसर श्री पास नो, महिमा मन्त्र जपाय ॥५०॥
॥ कडखानी चाल ॥
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ॐ जितुं ॐ जितुं ॐ जितुं उपसम घरी, ॐ ह्रीं श्रीं श्री पार्श्व अक्षर जयंते । भूत ने प्रेत झोटिंग व्यंतर सुरा, उपसमे वार इकवीस गुणंते ॥
ॐ ५१ ॥ दुद्धरा रोग सोगा जरा जन्तु ने, ताव एकांतरा दुत्तते । गर्भ
बन्धन व्रणं सर्प बिच्छू विषं, चालिका वालमेवा झखंते ॥ ॐ ५२ ॥
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