________________
जैन - रत्नसार
५१२
VV wwwww
wwwwwˇˇˇˇ wwwww
अछे, तुझने मुझने जाणी । संका छोड़ी काम करि, करतो मकरि
संताणी ॥२४॥
॥ ढाल ॥
I
Į
पास मनोरथ पूरा करे, वाहण एक वृषभ जो तरे । परिकरथी परियाणों करे, एक थल चढ़ी बीजा उतारे ||२५|| बार कोस आन्या जे तले, प्रतिमा नवि चाले ते तले । गोठी मनह विमासण थई, पास भुवन मंडावूं सही ||२६|| आ अटवी किं करूं प्रयाण, कटको कोइ न दीसे पहाण | देवल पास जिनेसर तणों, मंडावं किम गरथें विणो ||२७|| जल बिन श्री संघ रहस्ये किहां, सिलावटो किम आवे इहां । चिन्तातुर थयो निद्रा लहें, यक्षराज आवीने कहे ॥२८॥ गुंहली ऊपर नाणो जिहां, गरथ घणो जाणीजे तिहां । स्वस्तिक सोपारी ने ठाणी, पाहण तणी उल्लटस्ये खाणि ||२९|| श्री फल सजल तिहां किल जूओ, अमृत जलनी सरसी कुओ । खारा कुआ तणो इह सेनाण, भूमि पड्यो छे नीलो छाण ||३०|| सिलावटो सीरोही बसे, कोड पराभवियो किसमिसे । तिहां थकी तूं इहां आण जे, सत्य वचन माहरो मान जे ||३१|| गोठी नो मन थिर थापियो, सिलावट ने सुहणो दियो । रोग गमी ने पूरो आस पास तणो मंडे आवास ||३२|| सुपन मांहे मान्यो ते वैण, हेम वरण देखाड्यो नैंण । गोठी मनह मनोरथ हुआ, सिलावट ने गया तेडवा ||३३|| सिलावटो आवे सूरमो, जीमे खीर खांड घृत चूरमो । घडे घाट करे कोरणी, लगन भले पाया रोपणी ||३४|| थंभ थंभ कीधी पूतली, नाटक कौतुक करती रली । रंग मंडप रलियामणो रसे, जोतां मानव नो मन बसे ||३५|| नीपायो पूरो प्रासाद, स्वर्ग समों मांडे आवास दिवस विचारी इंडो घरयो, ततखिण देवल ऊपर चढ्यो ||३६|| शुभ लगनें शुभ बेला वास, पम्मासण बैठा श्री पास | महिमा मोटी मेरु समान, एकल मिल बिगड़े रहेवान ||३७|| बात पुरानी मैं सांभली, तवन मांहि सूधी सांकली । गोठी तणा गोतरिया अछे, यात्रा करीने परने पछे ||३८ ॥
1