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जैन-रत्नमार
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सुर मुनिवर कोडिनंत ए गिरिवरं । मुक्ति रमणी चढ्या रंगे, नमो० ५ ॥ पाताल लोक मुरलोक मांही, विमल गिरिवर तो परं । नहि अधिक तीरथ तीर्थपति, नमी० ६ ॥ इम विमल गिरिवर शिखर मंडण, दुख विहंडण ध्याइये । निज शुद्ध सत्ता साधनारथ परमज्योति निपाइये || जित मोह कोह विछोह निद्रा, परमपद स्थित जयकरं । गिरिराज सेवा करण तत्पर, पद्म विजय सुहितकरं ॥७॥
|| सिद्धाचल चैत्यवन्दन ॥
जय जय नाभि नरिंद नंद, सिद्धाचल मंडण | जय जय प्रथमजिणंद चन्द भवदुःख विहंडण ॥१॥ जय जय साधु सुरिंद वृन्द, वंद्रिय परमेश्वर । जय जय जगदानंद कंद, श्री रिषभ जिनेश्वर ॥२॥ अमृतसम जिन धर्म नुए, दायक जगमें जाण । तुझ पद पंकज प्रीतिधर निसदिन नमत कल्याण ॥३॥
श्री सीमंधर जिन चैत्यवन्दन
जय जय त्रिभुवन आदिनाथ, पंचम गति गामी । जय जय करुणा शान्त दांत, भविजन हित कामी ||१|| जय जय इन्द नरिन्द वृन्द सेवित शिरनामी । जय जय अतिशयानन्त वन्त अन्तरगतिजामी ॥२॥ पूर्व विदेह विराजता ए, श्री सीमंधर स्वामी । त्रिकरण शुद्ध त्रिकालमें, नित प्रति करूं प्रणाम ||३||
॥ सीमन्धर जिन चैत्यवन्दन ॥
श्री सीमंधर वीतराग, त्रिभुवन उपकारी । श्री श्रेयांस पिताकुले, बहु शोभा तुमारी ||१|| धन्य धन्य माता सत्यकी, जिण जायो जयकारी । सो वृषभ लञ्छन विराजमान वंदे नरनारी ॥२॥ धनुप पांचशे देहडि ए, हय सोवन वान । कीर्ति विजय उवज्झायनो, विनय धरे तुम ध्यान ॥३॥ ॥ सीमंधर जिन चैत्यवन्दन ॥
सीमंधर परमात्मा, शिव सुखना दाता । पुक्खल वइ विजये जयो, सर्व जीवना त्राता ॥१॥ पूर्व विदेह पुंडर गिरी, नयरियें सोहे | श्री श्रेयांस