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चैत्यवन्दन-विभाग प्रभु काटी कर्मणी जाल ॥५॥ श्री श्रेयांस इग्यारवां, प्रभुजी गुण मणिखाण । वासु पूज्य जिन बारवां, दीठा परम कल्याण ॥६॥ विमल नाथ जिन तेरवा, विमल विमल गुण खाण । अनन्त नाथ जिन सेवतां, प्रगटे आतम ज्ञान ॥७॥ धर्मनाथ जिन पनरवां, धर्मतणा दातार । शान्तिनाथ जिन सोलवां, तारे भवनो पार ॥८॥ कुंथुनाथ जिन सतरवां, तारक त्रिभुवन नाथ । श्री अरनाथ अट्ठारवां, साचा शिवपुर साथ ॥९॥ मुनि सुव्रत जिन बीसवां, दीठा आवेदाय ॥१०॥ नमिनाथ इकवीसवां, धारक गुण समुदाय । नेमिनाथ बावीसवां, भक्ति करो चितलाय ॥११॥ आशापूरे पासजी, त्रेवीसमो जिनचन्द्र । वर्धमान चौवीसवां, प्रणमें सुरनर इंद॥१२॥ ए चौवीसें जिन सदा, समरो चित हियलाय । आतम निर्मल कीजिये, प्रभुजी ना गुण गाय ॥१३॥ प्रभु समरयां पातक कटे, कोटि विघन टलि जाय । अम्बालाल करजोडि ने, प्रणमें जिनवर राय ॥१४॥ संवत उगणीसें इग्यारमो ए, माह सुदी पंचमी सार । जिन गुण गाता प्रेमसू, रत्नपुरी सुमझार ॥१५॥
श्री सिद्धाचल चैत्यवन्दन श्री शत्रुञ्जय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे । भावधारीने जे चढ़े, तेने भवसागर पार उतारे ॥१॥ अनन्त सिद्धनो एह ठाम, सकल तीर्थनो राय । पूर्व नवाणूं रिषभ देव, ज्यांठवियो प्रभु पाय ||२|| सूरज कुंड सुहामणी, कविडयक्ष अभिराम । नाभिराय कुल मंडणो, जिनवर करूं प्रणाम ॥३॥
॥ सिद्धाचल चैत्यवन्दन ॥ विमल केवल ज्ञान कमला, कलित त्रिभुवन हितकरं । सुरराज संस्तुत चरण पंकज, नमो आदि जिनेश्वरं ॥१॥ विमल गिरिवर शृङ्गमंडण, प्रवर गुणवर भूधरं । सुर असुर किन्नर कोडि सेवित, नमा० २ ॥ करति पटक किन्नरीगण, गाय जिनगुण मनहरं । सुर इन्द्र वलि २ नमे अह
निग, नमो० ३ ॥ पुण्डरीक गणपति सिद्ध साधी, कोडिपण मुनि मन : है। श्री विमल गिरिवर शृङ्ग सिद्धा, नमो० ४ ॥ जिन साध्य साधन
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