________________
Examitatistakestanetstontestantstachistosomiakhotheraitsetsnasty
rammraninewwwmarrorm
Reshakelilaslilhinetrikakkasikanachikhalil
जैन-रनसार बनारसी नाम गणधर दस परिवार युत, आपो शिवपुर धाम ॥३॥ सोलह सहस मुनि जास शीश, अडतीस सहस । श्रमणी श्रावक एक लाख, चौसट्ठी सहस ॥४॥ त्रिणलख गुण चालीस सहस, श्रीवकणी सार, पार्श्व यक्ष पदमावती, नित सांनिधिकार ॥ ५ ॥ तेतीस मुनि परिवार सुंए, मास खमण तप जाण प्रभु सीधा सम्मेतगिरि करो संघ कल्याण ॥६॥
॥वीर जिन चैत्यवन्दन ॥ वरेण्य गुणवारिधिः परमनिर्वृतः सर्वदः, समस्त कमलानिधिः सुरनरेन्द्र कोटिश्रितः । जनाति सुखदायको विगत कर्म वारो जिनः, सुमुक्तजन सङ्गमस्त्वमसि वर्द्धमान प्रभो ॥१॥ जिनेन्द्र भवतोऽद्भुतं मुखमुदार बिम्ब स्थितं, विकार परिवर्जितं परम शांत मुद्राङ्कितम् । निरीक्ष्य मुदितेक्षणः क्षणमितोऽस्मि यद्भावनां जिनेश ! जगदीश्वरोद्भवतु मे सर्वदा ॥२॥ विवेकिजनवल्लभं भुविदुरात्मनां दुर्लभं, दुरन्तदुरित व्यथाभर निवारणे तत्परम् । तवाङ्गपद पद्मयोयुगमनिन्ध वीर प्रभो, प्रभूत सुख सिद्धये मम चिराय सम्पद्यताम् ॥३॥
॥वीर जिन चैत्यवन्दन ॥ चन्दू जगदाधार सार शिव संपति कारण । जन्म जरा मरणादि रूप भव ताप निवारण ॥ श्री सिद्धारथ तात मात, त्रिशलातनु जात । सोवन वरण शरीर वीर, त्रिभुवन विख्यात ॥ अमृत रूपे राजतो ए, चौवीसमों जिनराय । क्षमा प्रमुख कल्याण मुनि, आपो करि सुपसाय ॥१॥
॥ चतुर्विंशति जिन चैत्यवन्दन ॥ ___ आदिनाथ पहला नमं, शिवदायक स्वामी। अजितनाथ बीजा नमू जग अंतरजामी ॥१॥ श्री संभव त्रीजा नम, त्रिभुवन हितकारी । अभिनन्दन चौथा नमूं प्रभु जगदाधारी ॥२॥ सुमतिनाथ जिन पांचमां, सुमति तणा दातार | पद्म प्रभु छठा नमं, पहोता मुक्ति मझार ॥३॥ श्री सुपार्श्व जिन सातवां, कह्याकर्म चकचूर । चन्द्र प्रभ जिन आठवां, पाम्यासुख भरपूर ॥४॥ सुविधिनाथ नवमां नमू, प्रभुजी परमदयाल । दशवां श्रीशीतल ।