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__ पूजा-विभाग गुणहत्तरे सूरिमंत्र जाप करी ॥ गु० २३ ।। सेवामें बावन वीर खरा, जोगनियां चौसठ हुकम धरा । गुरु जगमे कइ उपकार करा ॥ गु० २४ ॥ माणक सूरीश्वर पद छाजे, जिनचन्द सूरि जगमे गाजे । भये दादा चौथा । सुख काजे ॥ गु० २५ ।। जिन चांद उगायो उजियालो, अम्मावसकी पूनमवालो । सब श्रावक मिल पूजन चालो || गु० २६ ॥ जिन अकबरको परचा दीना, काजीकी टोपी वश कीना । बकरीका भेद कह्या तीना || गु० २७ ॥ गंधोदक सुरभि कलश भरी, प्रक्षालन सद्गुरु चरण परी। या पूजन कवि ऋद्धिसार करी ॥ गु० २८ ॥
॥ श्लोक ॥ ____ सुरनदीजलनिर्मलधारकः, प्रबलदुष्कृतदाघनिवारकैः । सकल मङ्गल वाञ्छितदायकं, कुशलसूरिगुरोश्वरणौ यजे ॥२९॥ ॐ ह्रीं परमपुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्री जिनशासनोद्दीपकाय चरणकमलेभ्यो जलं निर्वामि स्वाहा।
केशर चन्दन पूजा
॥दोहा॥ केसर चन्दन मृगमदा, कर धनसार मिलाप । परचा जिनदत्त सूरिका, पूज्यां तूटे पाप ॥१॥
॥ चाल वीण बाजेकी ॥ .. आये भरुअच्छ नग्र, धाम धूम धू। बाजते निशान ठोर, हप रंग हूँ ॥ दीनके दयाल राज सार सार तं ॥ दी. २ ॥ मुसलमान मुगलपूत, फौज मौजमं । फौत मौत हो गया हायकार सूं ॥ दी० ३ ॥ सधन विधन देख आप, हुकम दीन यूं। लावो मर पास आप. जीव दान दृ ॥ दी० ४ ॥ मृतक पृत मंत्रसे उठाय दीन । न देखके अचंभ रंग, दास खास कं॥ दी० ५॥ करत संव भाव पूर,
नुकराज ज । छोड़के अभक्ष्य खान, हाजरी भरूं ॥दी० ६॥ चीज खीजक : पड़ी. मनिक्रमणके मुं। हायसे उठाय पात्र, ढांक दीन छ । दी० ७ ॥
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