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________________ NikkirturermantikriA rthritraordinatinikkistanARITANYatkary जैन-रनसार पद, सूरि जिनेश्वर भाश। चैत्यवासिको जीत कर, सुविहित पक्ष प्रकाश ॥६॥ अणहिलपुर पाटण सभा, लोक मिले तिहां लक्ष । खरतर बिरुद सुधानिधी, दुर्लभराज समक्ष ॥७॥ अभयदेव सूरि भये, नव अंग टीकाकार । थंभण पारस प्रगट कर, कुष्ठ मिटावन हार ॥८॥ श्रीजिनवल्लभ सूरि गुरु, रचना शास्त्र अनेक । प्रतिबोधे श्रावक बहुत, ताके पट्ट विशेष ॥९॥ हुंबड श्रावक वाघडी, अट्ठारे हज्जार | जैन दयाधर्मी किये, वरते जय जयकार ॥१०॥ दादा नाम विख्यात जस, सुरनर सेवक जास । दत्तसूरि गुरु पूजतां, आनंद हर्ष उल्लास ॥११॥ दिल्लीमें पतशाहने, हुकम ! उठाया शीष । मणिधारी जिनचंद गुरू, पूजो बिसवाबीस ॥१२॥ ताके पट्ट परंपरा, श्री जिनकुशल सुरिंद। अकबरको परचा दिया, दादा श्री। जिनचंद ॥१३॥ ऐसे दादा चारको, पूजो चित्त लगाय। जल चन्दन कुसुमादि कर, ध्वज सुगंध चढ़ाय ॥१४॥ ॥ दादा चिरंजीवो ॥ गुरुराज तणी कर पूजन, भवि सुखकर मिलसी लच्छि घणी ॥ गु० ॥ गुरु दत्त सुरिंद जग सुखकारी, गुरु सेवकने सानिधकारी । गुरु चरण कमलकी बलिहारी ॥ गु० १५ ॥ संवत इग्यारे वार शशी, बत्तीसे जनम्यां शुभ दिवसी । श्रावग् कुल हुंबडने हुलसी ॥ गु० १६ ॥ जसु बाछगसा पितु नाम भणे, वाहडदे माता हर्ष धणे । इकतालीसे दीक्षा पभणे |गु०१७॥ गुणहत्तरे वल्लभ पाट धरी, गुरु माया बीजनो जाप करी। गुरु जगमें प्रगट्या तरणतरी ॥ गु० १८ ॥ मणिधारी जिनचंद उपगारी, जिनदत्त सुरिंदके पटधारी । भये दादा दुजा सुखकारी ॥ गु० १९ ॥ राशल पितु देल्हणदे माता, श्रीमाल गोत्र बोधन शाता। दिल्लीपति शाह सुगुण । गाता । गु० २० ॥ जसु चौथे पाट उद्योत करी, जिनकुशल सुरिंद अति हर्ष भरी । तेरेसै तीसे जन्म धरी ।। गु० २१ ॥ जसु जिल्ला जनक जगत्र । जीयो, वर जैतश्री शुभ स्वपन लियो । गुरु छाजेड गोत्र उद्धार किया ॥ गु० २२ ॥ धन संतालीसे दीक्षा धरी, जिनचन्द सुरीश्वर पाट वरी । - - - - - - न्त्र चन्नप्रवचनलकन्ननननननन् अनियन्त्रित RAMA బతమయమున
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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