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पूजा - विभाग
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रे ॥ म० ॥ अवर देव तुम काहेको ध्यावो, वीतरागको जाचो रे ॥ म० ६ ॥ इन सम अपर कौन उपगारी, भव भवमें सुखदायी रे || म० ॥ सुर नर मुनिवर सबही ध्यावे, सुरपति सीस नमायो रे || म० ॥ ७ ॥ भविक कमल तुम दरसन करिके, परम परमसुख पायो रे ॥ म० ॥ आज हमारे हरष बधाई, आज आनन्द उछायो रे ॥ म० ८ | आज अमी घर मेहला वरस्या, आज अधिक सुख पायो रे ॥ म० ॥ तारण तरण जिनेसरजीकी, पूज रची वरदायो रे || म० ९ ॥ रायपसेणी जीवाभिगममें, एहनो फल दरसायो रे || म० ॥ अष्ट द्रव्य चंगेरी धरके, विधि पूर्वक मन लायो रे ॥ म० १० ॥ धरम विशाल दयाल के नन्दन, सुमति प्रभू गुण गायो रे
॥ म० ॥ ए जिनराज की पूजन करतां, समकित शुद्ध उपायो रे ॥ म० ११ ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दश रज्वात्मके शाश्वत अशाश्वत जिनेन्द्राय अष्टद्रव्यं मुद्रां यजामहे स्वाहा ।
षष्ट अक्षत पूजा ॥ दोहा ॥
अक्षत अमल अखंडले, पूजो दीन दयाल | मंगल आठ करो वली, प्रगटे मंगल माल ॥ १ ॥ श्री चन्द्रानन जिनवरूं, दुजा श्री महाराज । सुरतरु सम सेवी सदा, वंछित पूरण काज || २ ||
यात्रीडा भाई यात्रा निनाणूं करिये ॥
सखीरी ए जिन पूजन करिये रे। जिन सेव्यां भवजल तरिये, सखी री ए जिन पूजन करिये ॥ श्री चन्द्रानन महाराजा रे, जग जीवन तं जिन राजा रे, प्रभु तारण तरण जहाजा || स० ३ || तुम वीतराग गुण राजा रे, सुरनर सब पूजन काजा रे, आवे भगते ले शुभ साजा ॥ स० ए० ४ ॥ ए करुणा निधि महाराजा रे, प्रभु
दोष रहित मुनि राजा रे, सेव्यां सफल हुए वर अष्ट द्रव्य शुभ लेई रे, पूजो जिनराज निज देही ॥ स० ए० ६ ॥ इमशाश्वत श्री जिन
सब काजा ॥ स० ए० ५ ॥ सनेही रे, जिम सफल हुवे राजा रे, बलि तारण