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నందనవనవ
ననననననను
sahatra
కొనసావనను
ENANCIAS
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जैन-रत्नसार बिचमें, छेहड़े तनुक उदारा, मैं वारी जाऊं छेहड़े तनुक उदारा । उलटे छत्र आकारे दाखी, सूत्रे श्री गणधारा मैं वारी जाऊं सूत्रे श्री गणधारा ॥ नि० ६ ॥ घटारी मटारी छे अति सुन्दर, कारण क्षेम उदारा, मैं वारी जाऊं कारण क्षेम उदारा । जनम मरण , सब आधी व्याधी, दूर किया दुख सारा ॥ मैं० ७ ॥ अष्ट करमको दूर करीने, विलसे सुख अविकारा । मैं वारी जाऊं विलसे सुख अविकारा । सादि अनन्त थिति जेहनी छाजे, सेवे सुरनर सारा ॥ मैं० ८॥ जोगीसर तेरी गति जाणे, करुणारस भंडारा, मैं वारी जाऊं करुणारस भंडारा । गुण इकतीस प्रगट भए जिनके, प्रगट्यो सुक्ख अपारा ॥ मैं. ९॥ लोकालोक काछना प्रगटे, देखे भाव उदारा, मैं वारी जाऊं देखे भाव उदारा । मुरनर मुनिवर सेवा करत हैं, जय जय जग भरतारा ॥ मैं० १० ॥ धरम विशाल दयाल के नन्दन, सुमति कहे सुखकारा, मैं वारी जाऊं सुमति कहे सुखकारा । सिद्ध अनन्त की सेवा करता, सदा हुवे जयकारा ॥ मैं० ११ ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दश रज्वात्मके शाश्वत अशाश्वत जिनेन्द्राय अष्ट द्रव्यं मुद्रां यजामहे स्वाहा ।
पञ्चम पूजा
॥ दोहा॥ दीपक पूजा पांचमी, करो भविक मन रंग। दीपक जिम प्रगटे सही, केवल ज्ञान अभंग ॥१॥ शाश्वत श्री जिनचन्द्र कं, नमन करी सुखकाज । भाव धरी नित पूजतां, पावें सुक्ख समाज ॥२॥
॥चाल॥ ऋषभानन जिन सेवो रे मनवा, ऋषभाननन जिन सेवो। तारण तरण जिनेसर कहिये, देवें सुख नित मेवो रे ॥ मनवा० ३ ॥ लोकालोक प्रकाशक एही, एहना गुण नित गावो रे ॥ म० ॥ सुरनर सबही पाय परत हैं, एहनी आन धरावो रे ॥ म०४ ॥ तारण तरण यही अलवे सर, लुल लुल सीस नमावो रे ॥ म० ॥ लोक अलोक को सूहिज दरसी, तनमनसे गुणगावो रे ॥ म० ५॥ परम पुरुष परमेसर साचो, ए देखी नित राचो