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पूजा-विभाग
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मोक्ष कल्याणक पूजा
जल पूजा
॥ दोहा॥ पूजो निर्मल मन करी, अविचल पदनो ठाम । मुक्ति कल्याणक ध्यावतां, पामें अखयपद धाम ॥१॥
(तुम साहिब सुखदाई कुशल गुरु) सादि अनन्त सुखदाई, श्री जिनसादि अनन्त सूखदाई । सुखम योग निरोध न करके, आयुजी वीर्य रहाई ॥श्री०२॥ निय निय तनुमान, ऊन त्रिभागे घन पर देश समाई । द्विसप्तति परकीरति क्षय कर, तेरे अंतर माई ॥ श्री० ३॥ पूर्व प्रयोगति गतिने योगें, सहुसंग त्याग कराई। एक समय अणफरस प्रदेशं चउवीसम भाग ठहराई ॥ श्री० ४ ॥ सप्तभंगी अनन्त चतुष्टय परावर्त रहाई । श्री जिनचन्द्र अखय निधिदायक, सुरतरु सम अखय कहाई ॥ श्री० ४ ॥
॥ श्लोक ॥ वीर्यायुं जीव रघनतरं योगरोधं च कृत्वा, भागोनं निज धन कृतं । सर्व मात्म प्रदेशान् । सिद्धस्थानं अचल पदवी प्राप्त नैर्मल्य धामं, निर्वाणे श्री जिनवरगणान् सज्जलैः स्नापयामि ॥५॥ ॐ ह्रीं परमात्मने अनन्त चतुष्क सहिताय अविचल निधि स्थानाय चतुर्विंशति तीर्थंकराणां निर्वाण कल्याणकेभ्यः धूपं यजामहे स्वाहा ॥
चन्दन पूजा
॥ दोहा ॥ निरुपद्रव शिवपद अचल, अव्यावाध स्वभाव । शिवपद चन्दन पूजतां, पावें कर्म विभाव ॥१॥
(तें तज दीनो साहिबा ) दर्शन दीजी साहिबा शिवपद ठायके । निराकारता घन परिणामें,
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นไกลใจให้คนได้ในไตไอดโคมไฟไปฟ้อง ในไต
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