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Matthండదండం మనందంగుడు
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पूजा-विभाग भविजन मन भावन श्री, जिनचन्द्र भजो निज आतमराम ॥ वरवाणनाण में परम अमोला, झल हल भानु समान । षट् द्रव्य भावकं आविर भावे, कीनो जान सुजान, एतादृश महिमा पूरण पूरित, तीन लोक गुन खान ॥ भविजन० २॥ धन धन जिन नायक नाम, रूप गुण ज्ञान अनंत विलास । सांभल मन भावन पावन, कीरति सकल सुचेतन वास । मिल पाने कारन काज संवारे, भक्ति अखय गुरु वास ॥ भ० ३ ॥
(गुण अनंत अपार ) ज्ञानामृत रसकूपे प्रभु तुम, समता जलधि सरूप ।। प्रभु० ॥ पंचदश पर कीरति क्षयकर, पायो सयोगी ठाण । चत्वारिंशत् नेत्रे शेषे उदयिक 9 भावे जाण ॥ प्र. ४ ॥ करम दुक्कर तिमिर ध्वंसक, प्रगट्यो ज्ञान खभाव ।
लोकालोक प्रकाशे दिनकर, वस्तु अनंत खभाव ॥ प्र० ५॥ सर्व द्रव्यगत सर्व पर्याय, परदेश भाव अनंत । सर्व प्रदेश एक द्रव्य गुण, बोध भाव अनंत ॥ प्र० ६ ॥ स्वपर पर्याय सर्वज्ञाता, गुण अक्षय जिनचन्द । विशेषावश्यक द्वितीय ज्ञाने ए अधिकार दिनंद ॥ प्र० ७ ॥
॥ श्लोक ॥ निर्व्याघातं समस्तं, भविजन हितदं नैर्मलं बोधवीजं, लोकालोक। प्रकाशं स्वपर दिनमणि मोक्ष लक्ष्यैक हम्य । भावान्या व्याप्त रूपं परम गुणधरं
शुद्ध सद्पयुक्तं, कैवल्यं तीर्थनाथं सकल गुणयुतं तीर्थकः स्नापयामि ॥८॥ । ॐ ह्रीं परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय लोका
लोक प्रकाशकाय चतुर्विंशति तीर्थंकृतां केवल कल्याणकेभ्यो जलं यजामहे
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स्वाहा।
. चन्दन पूजा
॥दोहा॥ अनन्त गुणनी संपदा, प्रगट भई सुखकंद । ऐसे जिन पद चंदने, अर्ची परमानंद ॥१॥
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