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Sastante festostaaten
पूजा - विभाग
नैवेद्य पूजा
॥ दोहा ॥
सरस सुगंध माधुर्यता, नैवेद्य अनेक विधान ।
श्री जिन आगल ढोकतां, पामें परम निधान ||१|| ( बीजे भव वर० >
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श्री जिनवर पदकज सुखदायक, भवजल तारण भिन्न । मोक्ष रूप कारज करवाने, आतम कर्त्ता अभिन्न रे । भविका जन्म कल्याणक सेवो, अविचल सुखनोकंद रे ॥ भ० २ || आर्यादि संयोगी कारण, प्रभु कारण निर्वित्ते । इतरेतर संयोगी कारण, कर्ता कारण युक्ते रे ॥ भ० ३ ॥ पर पुद्गल सहाय तजीनें भास्यो अन्यावाघ, श्री जिनचन्द्र अखयपद कारण, आतम शक्ति अवाध ॥ रे भ० ४ ॥
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॥ श्लोक ॥
अपारे संसारे जगदचिर भावं त्वनुभवं, त्रिभावैर्वैराग्यं सकल जगद -- विरहितम् । सुबोधैः सज्ज्ञानैः प्रमित सहितं भोज्य सरसं, जिना जन्मा वस्थां मधुर तर भोज्यं च विदधे ॥५॥ ॐ ह्रीं परमात्मने ज्ञानत्रय सहिताय परोपकारैक रसिकाय सकल जिनवरेन्द्राय जन्म कल्याणकेभ्यः नैवेद्यं यजामहेस्वाहा ।
फल पूजा
॥ दोहा ॥
सरस मधुर फल कर धरी, पूजे जे जिनराज ।
सादि अनंत भागें करी, पामें भविजन पाज ॥१॥ (पंग हिंडोला )
चालो सखी देखन जाइयें, प्रभु कुं झुलावे हो जिन कूं, भविजन
देखन जाइये ॥ प्र० ॥ आयो मनोहर काल प्रावृट्, सकल व आनंद | जहां असित जलधर गगन गर्जित, दमन दमक मनिंद ॥ सित मुक्ति इव बक पंक्ति विचरे, मेघ धारा कंद । ऐसो समय जब देखिके नृत्य करे
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