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पूजा-विभाग
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धूप पूजा
॥दोहा॥ सेलारस मिश्रित प्रवर, सुमति सुगन्ध मिलाय । सरस धूप जिन आगले, सकल करम क्षय थाय ॥१॥
( कड़हला अचिरानन्दन स्वामिनी ) जन्म समय प्रभु पेखीयो, रवि शशिके अनुहारेंजी । जिन दर्शन थी ऊपनो, आतम गुण संभारेंजी । अब मिलिया म्हांने सुरतरु ॥२॥ तत्व रुची निज आत्मनी, अथवा शुद्ध सिद्धान्तजी, समकिते शुद्धनयंकरी, संग्रहथाये एवं भूतंजी ॥ अ० ३ ॥ श्रीजिनचन्द्र अखय परसादथी, पाम्योवोध समस्ते जी। आतम गुण पर गट करी, थयो आज सनाथ जी ॥ अ० ४ ॥
(श्लोक ) समस्तं आवर्णंधन दहन कर्तुं ज्वलनवत, सुगंधैः कर्पूरैः मृग मद मुगंधैः सुनिचयैः। दशांगैः यडूपैः सुरनर गणानां मनहरैः जिनां जन्मा वस्था शिवपद निवासाय सुयजे ॥५॥ ॐ ह्रीं परमात्मने ज्ञान वय सहिताय परोपकारैक रसिकाय सकल जिनवरेन्द्राय जन्म कल्याण केभ्यः धूपं यजामहे स्वाहा ।
दीपक पूजा
॥दोहा॥ भाव दीप परमेसरूं, तम अज्ञान विनास । द्रव्य दीप जलावतां, पामें आतम भास ||२||
(पूर्व पुण्याई है सरिखी ) जन्म महोच्छव अनुपमनिरखी । पू० २ ॥ सकल विभावना है त्यागी निमल सत्ता गुणनी गगी । पू० ३॥ सत्ता त्रिविधं है जाणी, वाधक : नायक सिद्ध वग्वाणी ॥ पृ० मिथ्या भावें है वाधक. समकिन केवली ।
मोडि. साधक ॥ पृ० ५॥ कम विभावी है. लिही. प्रभुजी साधक सत्ता । : शुओ। पृ. ६॥ ज्ञान विभंगी है भाबी. एनानिम्पम ज्ञान प्रकागी ॥ पृ० ।