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पूजा - विभाग
! त्रोटक ॥
नृत्य गान करके भाव धरके, विमल जल कर जिन न्हवे । अच्युतादि इन्द्र निर्जर स्वापयित्वा प्रभुस्तवे ॥ ततो सोहम विमल जल कर भक्ति निर्भर उत्सुकं, जिनचन्द्र अंगें वसन मार्जित यक्ष कर्दम लिप्तकं ॥९॥ सुनइयाजी कोड़ि बत्तीस उबारिया । सहु वाजिन्रजी मनोहर शब्द बजाइया ॥ १० ॥ तदनन्तरजी इन्द्रादिक जिनरायनें, आनंदेंजी अर्पण करि मात ने ॥ ११ ॥
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मातनें अर्पण सर्व सुरपति जाय नंदीश्वर पछे । अष्टाह्निका करि उत्सव सहु निज थानक गछे ||१२|| माता पिता बहु दान देवें मान हर्ष से करें । अशुचि कृत्य टाली वजन आगें नाम थाप्यो अनुसरें ॥ १३ ॥ ॥ श्लोक ॥
जिनां जन्मं ज्ञात्वा सकल विबुधेंद्राः प्रमुदिताः प्रभो भक्त्युत्साहैः जिनवर महिम्नैः प्रचलिताः । गृहे गत्वा नत्वा त्रिभुवन गुरु मेरु शिखरे, जलौघैः तीर्थानां सकल जिनराजं त्रपयति ||१४|| ॐ ह्रीं परमात्मने ज्ञानत्रय सहिताय परोपकारैक रसिकाय सकल जिनवरेंद्राय जन्म कल्याकेभ्यः जलं यजामहे स्वाहा ।
चन्दन पूजा
॥ दोहा ॥
चन्दन सूं जिन पूजतां, मिटे ताप मिथ्यात । जन्म महोच्छव सेवतां, थाये गुण विख्यात ॥१॥
( सइयां की नगरियां बता दे )
जिनवर जन्म - वधाइ सोहाई मोरे मनमें। अनुपम रूप जिनेसर पेखी, आनन्द अंगन माई सजन में || मो० २ ॥ कनक वरण तन प्रभु को राजे, दिनकर तेज समाइ सुतन में || मो० ३ ॥ रक्तोत्पल समकर मद सोहे, दृग्पीयूष भराई बदनमें || मो० ४ ॥ अर्द्ध चन्द्र सम भाल विराजें, नासा शुक मुख पाइ सोभन में || मो० ५ ॥ घूघर वाले अलख अनूपम,