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जैन-नसार
अर्ध पूजा
अक्षय पद निवासी जैन चन्द्रं यज॑ते, अविचल निधि धामं ध्याययन्प्राप्नुवंति । निशि दिन शुभ सौख्यं राज्यलक्ष्मीं तनोति, जिनवर परमेष्ठी बोध बीजं बवर्तु ॥१॥ ॐ ह्रीं परमात्मने चतुर्विंशति तीर्थंकराणां च्यवन कल्याणकेभ्यः अर्घं यजामहे स्वाहा ।
जन्म कल्याणक पूजा
जल पूजा ॥ दोहा ॥
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पूरब पुण्यें जन्मिया, अक्षय मुनि जिनचन्द |
सुरनर मिल उच्छव करे, चढत भावनो कंद ॥१॥ ( मैं तो तुम पर वारी हो पास जिणंदा )
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मै तो तुमरी बलिहारी हो प्यारे जिनंदा । जनम अनंतर आसन कंपित, छप्पन दिक्कुमरी आई । जिनमाता जिनवर कूं बंदी, स्वस्व कृत्य सजाई ॥ त्या० २ ॥ सूती करम करीने सघली, जिनवर मात न्हवाई | जनम सफल कर वानें काजें, मङ्गल गान बधाई ॥ प्यारे ० ३ ॥ जिनवर जन्म समयने कालें, नारक पिण सुख पावें । दशों दिशा निर्मलता धारें, घंट अव्यादिक शुभ भावें ॥ प्या ० ४ ॥ शक्रादिक सहु हरष धरीनें, सुघोष बजावें । निय निय परिकर संगलेईनें, मेरु शिखर पर जावें ॥ हो प्या० ५ || आवि पुरंदर मातनमीनें, पंचक रूप बनाई। संपुट लेई मंदिर धाई, रोम रोम हरखाई ॥ हो प्या० ६ ॥ भाव अखय उत्संगे जिनचन्द्र, आनन्द अङ्गनमावें । अच्युतादिक सुरपति निय निय, अभियोगिक देव बुलावे || हो प्या० ७ ॥
चतुः षष्ठीजी अष्ट सहस कुम्भ मानकं, तीर्थोदकजी औषध सहु उन्मानकं । एक एकनो जी इन पर उच्छव नल्पकं, जिन सम्मुखजी आवि करे नृत्य गानकं ॥८॥