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అందుతుండటం మనం చదవండుకు మందు పాడుడిపడిన పరిచయం చేయడం ఎండుదుడుకు చదువుతుండడం జరు that training पूजा-विभाग
४०३ देहरा ॥ श्रु० ६ ॥ गुरु बिन और न को उपगारी, श्रीगुरुदेव नित गुणॐ मणि जेहरा । ऐसे गुरुकी कीरत करके, सुमति धरो दिलमें गुण गेहरा ॥ श्रु० ७॥
(नित नमिये थिवर मुनीसरा,) ___नित नमिये श्रुतधर मुनिवरा । अरथे श्री जिनराज वखाणे, सूत्रे श्रीगुरु गणधरा ॥ नि० ८ ॥ मेघधुनी जिम भविजन सुण के, हरखे ज्यूं केकीवरा । अंग इग्यारे गुणमणि धारक, बारे उपांग उजागरा ॥ नि०॥ जगत उद्धारण तूं परमेसर, सकल विमल गुण आगरा । छेद पयन्ना नंदी सेवो, मूल सूत्र भवि गुणकरा ॥ नि० ९॥ श्रुतधारी गौतम गुरु दीवो, पूरवचौद विद्याधरा । पहिलो आचारांग सूत्र वखाणे, चरण करण गुण सुखकरा ॥ नि० १०॥ दुजो सुयगडांग सूत्रसुणीजे, भेदतिसय तेसठ खरा ।। तीजो ठाणांग सूत्र विराजे, सुणतां पाप मिटेपरा ॥ नि० ११॥ चौथो समवयांग सुहावे, अर्थ अनेक करीवरा । पांचमे भगवइ महिमाकरिये ॥ सहस छत्तीस प्रसनधरा ॥१२॥ छटो ज्ञाता अंगसूध्यावो, धरम कथा कहे जिनवरा । नि० । सातमो अंग उपाशक कहिये, दश श्रावक प्रतिमाधरा । नि० ॥१३॥ आठम अंगे जिनवर दाखे, अन्तगड केवलि मुनीवरा । नि० । नवमें अंगे भवि सुन धारो, अनुत्तरववाईसुखकरा । नि० ॥१४॥ प्रश्नविचार कह्या जिन दशमें, अंगुष्ठादिक शुभतरा। अंग इग्यारमें जिनवर दाखे, कर्मविपाक विविध परा ॥ नि० १५ ॥ बारमो अंग जिणंद वखाणे, अतिशय गुण विद्याधरा । अक्षर श्रुत वलि सन्नी कहिये, सम्यक् भेद अधिकतरा ॥ नि० १६ ॥ सादि भेद सपरजव लहिये, गम्यक् भेद सुणो
नरा । अंग प्रविष्ट कहे जिनवरजी, भेद चौद सुणजों खरा ॥ नि० १७ ॥ , इम जो श्रीश्रुत ज्ञान आराधे, भाव भगत कर बहु परा । सुमति कहे गुरु
ज्ञान आराधो, वंछित पूरण सुरतरा ॥ नि० १८ ॥ ॐ ह्रीं परम परमात्मने । अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्री श्रुतज्ञानधारकेभ्यो
अप्टद्रव्यं मुद्रां यजामहे स्वाहा ।
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