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न्यूयप्रकल्व-प्रनयनान्तनमननप्रसस्त्र प्र
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जैन-रनसार तृतीय अवधिज्ञान पूजा
॥दोहा॥ अगर सेल्हारस धूपसे, पूजो अवधि उदार । बोध बीज निरमल हुवे, प्रगटे सुक्ख अपार ॥१॥ नवल नगीने सारखो, ज्ञान बडो संसार । सुरनर पूजे भावसू, महियल ज्ञान उदार ॥२॥
(निरमल होय भज ले प्रभु प्यारा,) अवधिज्ञानको पूजन करले, ज्यू पावो भव पार सलूणा ॥ अ० ॥ | ज्ञान वडो सुख देण जगतमें, उपगारी सिरदार सलूणा ॥ अ० ॥३॥ भेद
असंख कहे जिनवरजी मूल भेद षटसारस०अ०॥ वढमाण हियमाण वखाणे, । सूत्रे श्रीगणधार, स० [अ०॥४॥ सुरनर तिरि सहु अवधि प्रमाणे । देखें द्रव्य
उदार ॥स०॥ अवधि सहित जिनवर सहु आवे । थाये जग भरतार ॥ स० ॥५॥ ज्ञान विना नर मूढ़ कहावे। ढोर समो अवतार॥स०॥ ज्ञान दीपक सम जग मांहे। दिन दिन अधिकी सार ॥ स० ॥६॥ मूलमंत्र जग वस करवाको, एहिज परम आधार, स. ॥ अ० ॥७॥ ज्ञाननी पूजा अहनिस करिये, लीजे वंछित सार, स० ॥ ज्ञानने वंदी बोध उपावो, करम कलंक निवार, स० ॥ अ० ॥८॥ इत्यादिक महिमा भवि सुणके, पूजो अवधि उदार, स० ॥ सुमति कहे भवि भाव धरीने, सेवो ज्ञान अपार स० ॥ अ० ॥९॥ ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीअवधिज्ञान धारकेभ्यो अष्टद्रव्यं मुद्रां यजामहे स्वाहा ।
चतुर्थ मनपर्यवज्ञान पूजा
॥दोहा॥ केतकि दमणो मालती, अवर गुलाब सुगंध । भाव धरी पूजन करो, हरे कुमति दुरगंध ॥१॥ मनपर्यव पूजा करो, विविध कुसुम मनरंग । महके परिमल चिहुं दिसे पांमे सुजन अभंग ॥२॥
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स्नमस्त्र
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नामस्तराम
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