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पूजा-विभाग
....... ३६० कइयक मुनि मन भायो रे । कइयक देव अमरपति कइयक, प्रभु चरणन चित लायो रे ॥ शा० ३ ॥ पुण्य पाल राजा करजोरी, प्रभु चरणां सिर नायो रे । पूछी इस कलियुग की रचना, जिनवर भेद बतायो रे ॥शा०४॥ गुरु गौतम कू आज्ञा दीनी, देवदत्त घर जावो रे । नास्तिक मत का पूरा पंडित, उस · तुम समझावो रे ॥ शा० ५ ॥ सोहम गणधर कू समझा के, सूत्रविपाक सुनायो रे । कृपा धर्म को उत्तर सास्तर, दास चतुर सुन पायो रे ॥ शा० ६॥
॥ रागनी पीलू धन्याश्री ॥ ___फल पूजन फल दायक प्रभु की, करत सुजन भर पार लहेगा ॥ शुद्ध अभक्षित सटित गलित नहिं, पतित न भूमि सुधोत कहेंगा । श्रीफल पुंगी बदाम छुहारे, द्राक्षादिक फल भेद कहेगा ॥७॥ पात्र रजत भरि मधुर फलनि से, प्रभुके सम्मुख लाय ठवेगा । मुख से करि जिनवर गुण गायन, ताल मृदंग धुनि युत रहेगा ॥८॥ प्रेम सुलाय नयन जल भरि करि, अशुभ करम क्षणमांहि दहेगा । हम प्रभुको इन फलसे पूजे, प्रभु शिव फल हमही कू चहेगा ॥९॥ दास चतुर • फिर का चहिये, तीन भुवन जय जय लहेगा। फल पूजन फल दायक प्रभु की, करत सुजन भवपार लहेगा ॥१०॥
॥ श्लोक ॥ वीरः सर्व सुरा सुरेन्द्र महितो, वीरंबुधाः संश्रिताः। वीरेणाभिहतः स्वकर्म निचयो, वीराय नित्यं नमः ॥ वीरातीर्थमिदं प्रवृत्त मतुलं, वीरस्य में घोरं तपः । वीरे श्री धृति कीर्ति कान्ति निचयः श्री वीरभद्रंदिश ॥११॥
ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमन्महावीर जिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा ।
नवम वस्त्र पूजा
॥ दोहा ॥ देव दिव्य युग वस्त्र से, पूजो दीन दयाल । बिना वस्त्र निर्वाह नहीं, इस पंचम कलिकाल ॥१॥
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