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जैन-नार
॥ इन्द्रसभा ॥
पांच सुमति पंचेंद्रिय निग्रह, सोहि सरस पक्कान्न । रस अनंत युत मिष्ट पदारथ, ले पूजों भगवान ||७|| ( रागनी कांगडा प्रभाती )
मेरे प्रभु को मीठो दर्शन कहो किसको नहि भावेजी ॥ कामी कोधी कपटी धुतारे, उनकं नहीं सुहावेजी । द्वेषी अज्ञ पापी जन प्रभुकूं, देखि देखि जल जाबेजी ॥ मेरे० ८ ॥ सज्जन मित्र भले मन वारे, इसके ही गुण गावेंजी । दुष्ट कर्मको मारनहारे, वे इसके ढिग आवेंजी ॥ मेरे० ९ ॥ गुड भी मीठों शाकर मीठी मीठी चकिया मावेजी । अन्न भी मीठो अमृत मीठो, नहिं दर्शनके दावेंजी ॥ मेरे० १० ॥ भरि नैवेद्य थाल कंचन के, प्रभुके सम्मुख ठावेंजी । दास चतुर अब मीठो दर्शन, जन्म जन्म विच पावेंजी ॥ मेर० ११ ॥
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॥ श्लोक ॥
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वीरः सर्व सुरा सुरेन्द्र महितो, वीरंबुधाः संश्रिताः । वीरेणाभिहतः स्वकर्म निचयो, वीराय नित्यं नमः ॥ वीरान्तीर्थमिदं प्रवृत्त मतुलं वीरस्य घोरं तपः । वीरे श्री धृति कीर्ति कान्ति निचयः श्री वीरभद्रं दिशः ॥ १२ ॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमन्महावीर जिनेन्द्राय नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ।
अष्टम फल पूजा ॥ दोहा ॥
फल पूजन महाराज की, करे भविक धरि प्रेम ।
बिन प्रयास पावें सही, शिवफल निश्चय नेम ॥१॥
|| तुम बिन दीनानाथ दयानिधि कौन खबर ले मेरी ॥ शासनपति महावीर जिनेश्वर, अविचल शिवसुख पायो रे ॥ पावा पुरि में करि चउमासो, सांचा धर्म दिपायो रे । हस्तिपाल राजा प्रभु पूजे, तन मन धन हुलसायो रे || शा० २ ॥ कइयक श्रावक कइयक राजा,
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