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पूजा - विभाग
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सर्वौषधि जल लावे || प्र० १८ ॥ तीर्थोदक वर पद्मद्रहोदक, जल अभिषेक करावे | कल्याणक अभिषेक करे जो, दास चतुर गुण गावे ॥ प्र० १९ ॥ ॥ श्लोक ॥
वीरः सर्व सुरा सुरेन्द्र महितो, वीरंबुधाः संश्रिताः । वीरेणाभिहतः स्वकर्म निचयो वीराय नित्यं नमः ॥ वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं वीरस्य घोरं तपः । बीरे श्री धृति कीर्ति कान्ति निचयः श्री वीरभद्रंदिश ॥ २० ॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमन्महावीर जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा ।
द्वितीय चन्दन पूजा ॥ दोहा ॥
केशर चन्दन मृगमदा, अंबर और बरास ।
लेई पूजी सिद्धार्थसूं, महावीर हरि रास ॥१॥ ( कितनीक दूर तेरी काशी रे पांडे )
शासनपति महावीर रसीले, शासनपति महावीर रसीले ॥ छप्पन दिक्कुमरी गुण गावे, आवे जिनवर तीर रसीले । चौसठ सुरपति पांडुक वन में, पूजे जिनवर वीर रसीले ||२|| ताल मृदंग दुंदुभी बाजे, सरनाई गंभीर रसीले । ताथेइतान करत सं वनिता, तीर करे प्रभु तीर रसीले ||३|| देव सकल सुरनाथ हुकुम से, लावे तीरथ नीर रसीले । घसि चन्दन घनसार विलेपन, लावे सुरवर धीर रसीले ||४|| शकइंद्र पड़ गए संशय में, देखाबाल सरीर रसीले । संशय मोचन चरण परससे, मेरु चलायो धीर रसीले ||५|| थर थर कांप गये सुरपति सुर,
देखि अतुल
चल वीर रसीले । दास चतुर अब प्रभुकूं पूजे, कुंकुम चंदन सीर रसीले ॥६॥
( चाल इन्द्रसभा ) शुद्धतम चन्दन करि घिसिये, ज्ञानादिक गुण साथ | सौरभ प्रगटे सकल लोक के, होय निरंजन नाय ||७||
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