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जैन-रत्नसार
( रागनी त्रिताल )
भक्ति वाले ! शासन नायक, सेव अब पूज निरंजन देव ॥ केशर चंदन मृगमद भेली, और बरास मिलेव । क्रम जानूं कर कंध सीस भाल गल, नव अंग पूजन भेव ॥ भ० ८ ॥ मेरो साहिब प्राण पियारो, जो है देवाधिदेव । याके अंग परस सुख उपजे, वो मुख कहि न सकेव ॥ भ० ९ ॥ प्रभुगत रागी अद्भुत रागी, यह आश्चर्य कहेव । हे अनियारे अखियन वारे, दास चतुर सुख देव ॥१०॥ ॥ श्लोक ॥
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वीरः सर्व सुरा सुरेन्द्र महितो, वीरंबुधाः संश्रिताः । वीरेणाभिहतः स्वकर्म निचयो, वीराय नित्यं नमः || वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं, वीरस्य घोरं तपः । वीरे श्री धृति कीर्ति कान्ति निचयः, श्री वीरभद्वंदिश ॥ ११ ॥ ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमन्महावीर जिनेन्द्राय चन्दनं यजामहें स्वाहा ।
तृतीय पुष्प पूजा ॥ दोहा ॥
अपतित भूमि सुगन्ध शुभ, धौत प्रमार्जित फूल । पंच वरण भाजन भरी पूजन समकित मूल ॥१॥ ( दिलदार यार गबरू राखूं घूंघट का पट में ) सुनिये विनय हमारी, महावीर नाम वारे । हम बाल मित्र आए, आज्ञा पिता कि पाए । खेलन कुं जीव चाहे, महावीर नाम वारे । सुनिये ० ||२|| आछी अशोक वारी, उसमें खिली है क्यारी । फूलन बहार न्यारी, महावीर नाम वारे | सुनिये ० ॥३॥ चाले सखा बुलाए, वन वाटिकामें आए | फूलनके हार पाए, महावीर नाम चारे | सुनिये ||१|| अज्ञान का पठाया, सुर एक मूर्ख आया । करि नाग रूप धाया, महावीर नाम वारे | सुनिये ० ||५|| आके सखा पुकारा, आता है नाग कारा । सुनके उछार डारा, महाबीर नाम बारे | सुनिये० ||६|| पुनि कीन दुष्ट
Janandantakof