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मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय मद्वीर जिनेन्द्राय जलं", चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा।
शासन पति पूजा प्रथम जल पूजा
॥दोहा॥ सरस्वती जगदीश्वरी, श्रुतदेवी सुखदाय । जिन मुख उद्भव भारती, नमों शारदा माय ॥१॥ बर्धमान जिनवर नमं, जिन शासन सरदार । विघ्न हरण मंगल करण, नमू मंत्र नवकार ॥२॥ तूं दायक सोवन गुरू, वाकू करूं प्रणाम । दीवाली पूजन रचं, वीर जिनेश्वर नाम ॥३॥ पूजा शिव सुख दायिनी, कहतूं सूत्र प्रमाण । शासनपति महावीर के, पूजो छह कल्याण ॥४॥
॥सोरठा ॥ जल चन्दन वरफूल, धूप दीप अक्षत महा । नैवेद्य फल पटकूल, ध्वजा अर्घ आरात्रिका ॥५॥
॥दोहा॥ उत्तम जल कलशा भरी, पूजो त्रिशलानंद । निर्मल होवे आतमा, दिन दिन होत आनंद ॥६॥
॥ कवाली ॥ ( राम कहने का मजा जिसकी जबां पर आगया ) आज मैं आया शरणमें, नाथ करुणा कीजिये । कठिन कमों में पड़े
जल, चन्दन, पुष्प, धूप, दीपक, अक्षत, नैवेद्य, फल, नारियल, वस्त्र और नगदी : सब चीजे चौबीस चौवीस होनी चाहिये ।
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