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जैन-रत्नसार न्द्राय जलं चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षत, नैवेद्यं, फलं, वस्त्र, मुद्रां यजामहे स्वाहा । चतुर्विंशतितम श्रीमहीर जिन पूजा
॥ दोहा ॥ इक्ष्वाकु कुल केतु सम, त्रिशलोदर अवतार । ए प्रभुनी नित कीजिये, विविध भक्ति सुखकार ॥१॥
॥ राग ॥
(तेज तरण सुख राजे,) चरम वीर जिनराया, मेरे प्रभु चरम वीर जिनराया। सिद्धारथ कुल मंदिर ध्वज सम, त्रिशला जननी जाया । निरुपम सुन्दर प्रभु दर्शन तें,
सकल लोक सुख पाया ॥ मेरे० २ ॥ वामा चरण अंगुष्ट फरसते, सुर। | गिरिवर कंपाया । इन्द्रभूतिगणधर मुख मुनिजन, सुरपति वंदित पाया ॥ मेरे० ३ ॥ वर्तमान शासन सुखदाया, चिदानंद घनकाया। चन्द्र किरण गुण विमल रुचिर धर, शिवचन्द्र गणि गुण गाया ॥ मेरे० ४ ॥ वरसनंद* मुनि नाग धरणि मित, द्वितीयाश्विन मनभाया । धवल पक्ष पंचमि तिथि शनियुत, पुरजय नगर सुहाया ॥ हां मेरे० ५ ॥ श्रीजिन हर्ष सूरीश्वर साहिब, वर खरतर गच्छराया । क्षेमकीर्ति शाखा भूषण मणि, रूपचन्द्र उवझाया ॥ मेरे० ६॥ महापूर्व जसु भूरि नरेश्वर, वंदे पद हुलसाया । तासु शिष्य वाचक पुण्यशील गणि, तसु शिष्य नाम धराया ॥ मेरे०७ ॥ समय सुन्दर अनुग्रही ऋषिमंडल, जिनकी शोभा सवाया। पूज रची पाठक शिवचन्दे, आनंद संघ बधाया ॥ मेरे० ८ ॥
॥काव्य ॥ सलिल चन्दन पुप्प फल व्रजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्यजे ॥९॥ ॐ ह्रीं परम परमा
___* यह पूजा उपाध्याय श्री शिवचन्द्रजी महाराज की बनाई हुई है और सं० १८७६ मे दूसरे आसोज सुदी ५ शनिवार को वनी है।
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