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पूजा - विभाग
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नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्य्यजे ॥५॥ ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय जलं चन्दनं पुष्पं, धूपं दीपं अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहेस्वाहा ।
नवम श्री सुविध जिन पूजा
॥ दोहा ॥
सुविध सुविध समरण थकी, कामित फल प्रकटाय । अतीगहन संसार वन, बहुल अटन मिट जाय ॥१॥ ॥ राग ॥
( चंपक केतिक मालती, )
सुविध चरणकज वंदिये ए, नंदिये अति चिरकाल । शिव तरवारि निकंदिये ए, विघन कंद तत्काल || हां ए० २ || आज जन्म सफल भयो, दीठो प्रभु दीदार | तनु मन हग विकसित भये, जिम कज लखि दिनकार || हां ए० ३ || अमृत जलधर वरसियो, भवि उरक्षेत्र मझार । दर्शन सुरतरु ऊगियो, शिव फलनो दातार ॥ हां ए० ४ ॥
॥ काव्य ॥
सलिल चन्दन पुष्प फलवजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्य्यजे ||५|| ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् सुविध जिने - न्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा ।
दशम श्री शीतल जिन पूजा
॥ दोहा ॥
मुझ तन मन शीतल करो, श्री शीतल जिनराय ।
तुम समरण जलधारसे, अंतर तपत पुलाय ॥१॥