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जैन - रत्नसार
समरण फरसे || मे० ॥ चेतन लोह पणो परिहरके, हुय ले कंचन सरिसे, || मे० ॥२॥ ए प्रभु करुणा करकूं धरिले, उर जिम कमल भमरसे ॥ मे० ॥ जे भविजिन पद लगन घरे तसु, नहिं भय मरण असुरसे ॥ मे० ॥३॥ मात पृथ्वी तनु जात तनु द्युति, सम शुभ कंचन सरसे ॥ मे० ॥ कहें शिवचन्द्र चित्त नित मेरो, रहो प्रभु पद लय भरसे ॥ मे० ॥४॥
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॥ काव्य ॥
सलिल चन्दन पुष्प फलवजैः, सुविमलाक्षत दीपसुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्य्यजे ||५|| ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् सुपार्श्व जिनेन्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा |
अष्टम श्रीचन्द्र प्रभ जिन पूजा ॥ दोहा ॥
अष्टम जिनपद पूजिये, विविध कष्ट हरनार । अष्टसिद्धि नवनिधि लहे, जिन पूजन करतार ॥१॥ ॥ राग भीम मल्हार देशी कडखानी ॥
( मेघ बरसे भरी पुप्फ बादल करी )
परमपद पूर्व गिरिराज परि उदय लहि, विजित परचन्द्र दिनकर अनन्ता | चन्द्रप्रभ चन्द्रिका विमल केवल कला, कलित शोभित सदा जिन महन्ता || २ || परम ० ॥ कुमतिमत तिमिर भर हरिय पुन भूरि भवि कुमुद सुख करिय गुणरयण दरिया । गहिर भव सिंधु तारण तरणि गुण, धारि भव तारि जिनराज तरिया || परम० ||३|| राखिये आज मोहि लाज जिनराज प्रभु, करण सुख चरण जिन शरण परिया । परम शिवचंद पदपद्म मकरंद रस, पान नित करण तत्पर भरीया || परम० ||४||
॥ काव्य ॥
सलिल चन्दन पुप्प फलत्रजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध