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॥राग घाटो॥
( दादा कुशल सुरिन्द०) मेरे दीन दयाल तुम भये सकल लोक प्रतिपाल। सुणि शीतल जिनवर महाराज, चरण शरण धर्यो प्रभुनो आज ॥ मेरे दीन० ॥ न नमू सहु सविकारी देव, करतूं चरण कमलनी सेव ॥ मेरे० २ ॥ जैसे सुमिरण करतल पाय, कुण ले कांच सकल हुलसाय । तुम सम सुरवर अवर न कोय, हेर हेर जग निरख्यो जोय ॥ मेरे० ३ ॥ प्रभु दर्शन जलधर घनघोर, लखिय नृत्य करै भविजन मोर । पद शिवचन्द्र विमल भरतार, अरज एह, उर धारिये सार ॥ मेरे० ४ ॥
काव्य॥ सलिल चन्दन पुष्प फलबजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः। विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्यजे ॥५॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने । अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् शीतल जिनेन्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा।
एकादश श्री श्रेयांस जिन पूजा
॥दोहा॥ श्रीश्रेयांस जिनेन्द्र पद, नद द्युति सलिलाधार । जे नेत्रे मज्जन करे, ते शुचि हुई विधुतार ॥१॥
॥ राग ॥ ( सोहम सुरपति वृषभ रूप करि न्हवण०,) श्रीश्रेयांस जिनेश्वर जग गुरु, इन्द्रिय सदनसमंद हैं । जसु वसु विध पूजन से अरचो, उर धरि परमानन्द हैं ॥ ए समकित धर श्रावक करणी, हरिणी भविमन रंग हैं। विजय देव जिन प्रतिमा पूजी, जीवाभिगम
उपांग हैं ।। श्री. २ ॥ सूरियाभ प्रभु पूजन करियो, राय पसेणी उपांग म हैं । ज्ञाता अंगे द्रौपदी श्राविका, पूज्या जिन प्रति बिम्ब हैं । काल अनंत
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