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Saradastactaredabrdusareko katokstonkoldertakoserotodermathakoadeotathokkathakatke पूजा-विभाग
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| नरवर, धरिय भगति हितकारा हो ॥ भ० ९॥ ब्रह्मचरज व्रतधर नरवरके, प्रणमें चरण उदारा हो ॥ भ० ॥ दशमे अंगे भणियो नरवर्मा, नरपति गुण आधारा हो ॥ भ० १० ॥ ब्रह्मचरजव्रत पाल ला पद, जिन हर्षे जयकारा ॥ भ० ११ ॥
॥ काव्य ॥ सग्गापवग्गग्ग सुहप्पयरस, सुणिम्मलाणंत गुणालयस्स । सव्वव्वया भूसण भूसणस्स, णमोहि सीलस्स अदृसणरस ॥१२॥ ॐ ह्रीं श्रीब्रह्मचर्याय नमः।
त्रयोदश क्रियापद पूजा
॥दोहा॥ करम निरजरा हेतु हे, प्रवर क्रिया गुण खाण । जिनशासननी स्थिति रहि, किरियारूपे जाण ॥१॥ भुवनमांहि किरिया मही, सकल शुद्ध विवहार । प्रवरनाण दरिसणतणो, शुद्ध किरिया सिणगार ॥२॥
॥ राग मालवी गौडी ॥
(सब अरति मथनमुदार धूपं,) ___शुभध्यान किरिया हृदय धरिने, धर्म सकल उरधार रे । * आर्त रौद्रनी हेतु किरिया, अशुभ पणबीस बार रे ॥ शु० ३ ॥ । ज्ञानवंत अशस्त्र भट है, किरिया शस्त्र वतंस रे। सुभटनाणी
क्रियाशस्त्रे, करयकर्म अरिध्वंस रे ॥ शु० ४ ॥ ज्ञानसेंती वदे शिव । यदि, तेरमें गुण ठाण रे । एकनाणे करि जिनेसर, किमु न लहे निरवाण
रे ॥ शु० ५॥ जिनप शैलेशीकरण करी, चउदमे गुणठाण रे । सरवसंबर चरण करणे, लहे पद निरवाण रे ॥ शु० ६ ॥ ए अनंतर अमृत कारण, कह्यो जिनवर भान रे। सरब संबर चरण किरिया, न शिव इण विणु जान रे ॥ शु० ७ ॥ एक नाणे इक क्रिया में, न शिव वितरण शक्ति रे। कहे जिनवर उभय योगें, लहे भविजन भक्ति रे ॥ शु० ८ ॥ गरल मिश्रित
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