________________
Stotk
otthrottottakhatateghrathkrtstakh faths kodabrorobreaktadokteindedoktrearrirektos
जैन-रनसार
कारटा मन्त्रणवनग्राम
जिन आगम जोय ए ॥ हां० ८ ॥ देशथीं सम संयम विषे, उज्जलता | अनंत गुण थाय ए ॥ हां० ॥ अरुणदेव सेवी चरणने, भये जगगुरु जिन महाराय ए॥ हां. ९॥
॥काव्य ॥ कम्मोघकतार दवाणलस्स, महोदयाणंद लयाजलस्स । विण्णाण पंकेरुहकारणस्स, णमो चरित्तस्स गुणापणस्स ॥१०॥ ॐ ह्रीं श्रीचारित्राय नमः ।
द्वादश ब्रह्मचर्य पद पूजा
॥दोहा॥ सुरतरु सुरमणि सुरगवी, काम कलश अवधार । ब्रह्मचर्य इण सम का, कामित फलदातार ॥१॥ जिम जोतिसियां रजनिकर, सुरगणमें सुरराय । तिम सहु व्रत शिर सेहरो, ब्रह्मचरज कहिवाय ॥२॥
॥राग काफी जंगलो ॥
(भलो प्रभुगुण वाल्हा हो,) भवभयहरणा शिवसुखकरणा, सदा भजो ब्रह्मचारा हो ॥ भ० ॥ शील विबुध तरु प्रतिपालनकों, कहि जिनवर नववारा हो ॥ भ० ३ ॥ दिव्योदारिक करण करावण, अनुमति विषय प्रकारा हो ॥ भ० ॥ त्रिकरण जोगें ए परिहरिये, भजियें भेद अढारा हो ॥ भ० ४ ॥ कनक कोडिनो दान दिये नित, कनक चैत्य करतारा हो ॥ भ० ॥ एहथी ब्रह्मचरज धारकनो, फल अगणित अवधारा हो ॥ भ० ५॥ सहस चौरासी श्रवण दान फल, शुभब्रह्मव्रतफल सारा हो ॥ भ० ॥ विजयसेठ विजया सेठाणी, उभय पक्ष ब्रह्मधारा हो ॥ भ० ६ ॥ भये सुदर्शन सेठ शीलसें, मुगतिवधू भरतारा हो ॥ भ० ॥ सहस अढार शीलांगरथ धारा, धारि करो निसतारा हो ॥भ०७|| सिंहादिक वसुभय तरु भंजन, सिंधुर मद मतवारा हो ॥ भ० ॥ कलहकारि नारदऋषि सरिखे, तरयो भवजलधि अपारा हो ॥ भ० ८ ॥ पञ्चक्खाण विरति नहिं एहमें, ए ब्रह्मव्रत उपगारा हो ॥ भ० ॥ सकल सुरासुर किन्नर
प्रल
प्रजनन स्वतन्त्रतत्र प्रस्त