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मन्त्रमनप्रनगणनन ग्रन्ननग्रनल्ट
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जैन-रनसार
॥ वस्तु छन्द ॥ तत्थ अच्चुय तत्थ अच्चुय इन्द्र आदेश कर जोड़ी सर्व देवगण, लेइ कलश आदेश पामीय अद्भुत रूप सरूप जुय । कवण एह पुछंति सामिय इन्द्र कहे जगतारणों पारग अम्हपरमेश, नायक | दायक धम्मणिहि करिये तसु अभिशेष ॥५२॥
॥ ढाल ॥ पूर्ण कलश* शुचि उदकनि धारा । जिनवर अंगे न्हामें । आतम निरमल भाव करता वधते शुभ परिणामें। अच्युतादिक सुरपतिमज्जन लोकपाल लोकंत। सामानिक इन्द्राणी पमुहा इम अभिषेख करंत ॥ ५३ ॥ पू० ॥
॥ गाथा ॥ तव ईसान सुरिंदो, सक्क पभणेइ करि हु सुप्पसाओ । तुम अंके महणाहो, खिणमित्तं अह्म अप्पेह ॥५४॥ ता सक्किंदो पभणेई, साहमिय। वच्छलंमि बहुलाहो । आणाइ वंतेणं गिह होउ कयत्याभो ॥१५॥
॥ ढाल | सोहम सुरपति वृषभ रूप करि । न्हवण' करे प्रभु अंगे। करिय विलेपण पुफ्फणिमाला ठवि आ भरण अभंगे ॥ सो० ॥५६॥ तब सुरवर बहु जय जय रख कर । निश्चय धरि आणंद । मोक्ष मार्ग सारथ पति पाम्यो ॥ भांजि सं भवफंद ॥ सो० ॥५७॥ कोडिबत्तीस सोवन्न उवोरी। वाजंते वरनाद ॥ सुरपति संघ अमर श्रीप्रभुने । जननीने सुप्रसाद ॥ सो० ५८ ॥ आणी थापी एम पयंपे अझ निसतरिया आज । पुत्र तुम्हारो धणीय हमारो ॥ तारण तरण जहाज ॥५९॥ सो० ॥ मात जतन करि राखजो एहने तुह्म सुत अह्म आधार । सुरपति भक्ति सहित नंदीसर । करे जिन भक्ति उदार ॥६०॥ सो० ॥ निय निय कप्प
* इस जगह से थोड़ी थोड़ी जल धारा चढ़ावे । • यहां पूर्णतया भगवान् को पञ्चामृत से अभिपेख करावे । यहां निछरावल अवश्यमेव करें।
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प्रभू ग्रन
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TOPा जनमत्र-मन्वयनमा