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पूजा - विभाग
३०७
शर्के जिन खोले ग्रह्या । चउसहेंजी तिहां
सास बसे || तिहां आणीजी सुरपति आवी रह्या ||४४||
॥ त्रोटक ॥
आविया सुरपति सर्व भगतें कलश श्रेणि बणाव ए, सिद्धार्थ पमुहा तीर्थ औषधि सर्व वस्तु अणाव ए अच्चूयपति तिहां हुकम कीनो देव कोडा कोडिने । जिन मज्जनारथ नीर लावो सवे सुर कर जोडिने ||१५||
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॥ ढाल ॥
आत्म* साधन रसी देव कोड़ी हसी, उल्लुसीने धसी क्षीरसागर दिशी । पउमदह आदि दह गंग पमुहा नई, तीर्थजल अमल लेवा भणी ते गई ||४६|| जाति अड कलश करि सहसअठोत्तरा, छत्र चामर सिंहासणे सुभतरा । उपगरण पुष्पचंगेरि पमुहा सवे, आगमें भासिया तेम आणी ठवे ॥४७॥ तीर्थ जल भरिय करी कलश करि देवता, गावता भावता धर्म उन्नतिरता । तिरिय नर अमरने हर्ष उपजावता, धन्य अम्ह शक्ति शुचि भक्ति इम भावता || ४८ || समकितें बीज निज आत्म आरोपता कलश पाणीमिसे भक्ति जल सींचता । मेरुसिहरोवरि सर्व आव्या वही । शक्रउच्छङ्ग जिन देखि मन गह गही ||४९||
॥ गाथा ||
हंहो देवा हो देवा अणाई कालो अदिपुव्वो । तिलोयतारणो । तिलोयबंधू | मिच्छन्तमोहविद्धंसणो । अणाई तिष्ण विणासो ॥ देवाहि देवो दिव्वो दिव्वो हिअय कामेहिं ॥ ५० ॥
जेल
॥ ढाल ॥
एम पभणति वण भुवन जोईसरा । देव वेमाणिया भत्ति धम्मायरा । केवि कप्पटिया केबि मित्ताणुगा । केई वररमण वयणेण अइ
उच्छगा ॥५१॥
* यहां से सब स्नात्रियों को पश्चामृत के कलश लेकर खड़े होना चाहिये ।
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