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తలువడుతుందని మనవంతుడు మనవడు
पूजा-विभाग में गया सवि निर्जर। कहतां प्रभु गुणसार ॥ दीक्षा, केवल ज्ञान, कल्या
णक इच्छा चित्त मझार ॥ सो० ६१॥ खरतरगच्छ जिन आणारंगी.। । राजसागर उवज्झाय ॥ ज्ञान धरम दीपचंद सुपाठक । सुगुरू तणे
सुपसाय ॥ सो० ६२॥ देवचन्द्र जिन भगतें गायो जनम महोच्छव छंद ॥ बोधबीज अंकूरो उलस्यो ॥ संघ सकल आणंद ॥ सो० ॥६३॥
॥ ढाल ॥ इम पूजा भगतें करो। आतम हित काज ॥ तजिय विभव निज भावना। रमतां शिवराज ॥६॥ इ० ॥ काल अनंते जे हुवा । होसे जेह जिणंद । संपई सीमंधर प्रभु। केवल नाण दिणंद ॥इ०॥ ६५ ॥
जनम महोछव इण परे, श्रावक रुचिवंत । बिरचे जिन प्रतिमा तणो, 1 अनुमोदन खंत ॥ इ० ॥६६॥ देवचन्द्र जिन पूजना । करतां भवपार । जिन पडिमा जिन सारखी । कही सूत्र मझार ॥ इम० ६७ ।। . अष्ट प्रकारी पूजा
जल पूजा
॥ दोहा ॥ गंगा मोगध क्षीरनिधि, औषध मिश्रित सार । कुसुमे वासित शुचिजलें, करो जिन स्नात्र उदार ॥१॥
॥ ढाल ! मणि कनकादिक अडविध , करि भरि कलस सफार । शुभ रुचि जे जिनवर नमें तसु नहिं दुरित प्रचार ॥ मेरु शिखर जिम सुरवर जिनवर। हवण अमान । करता वरता निज गुण समकित वृद्धि निधान ॥२॥
॥छन्द ॥ : . हर्ष भरि अपसरावन्द आवे । स्नात्र करि एम आसीस भावे । जिहां
लगे सुरगिरि जंबु दीवो । अमतणा नाथ जीवातिजीवो ॥३||
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यह पूजा पढ़ने के बाद जल से स्नान करावे ।
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