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विधि-विभाग
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३ । खरचे निज मा मुख सुणिया, काजरे ए
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रे । खरचे निज मन भावधरी ने, पामें सहु जग कित्त रे ए तीरथ० ॥८५॥ र जिम तीरथ गुण गुरु मुख सुणिया, परतिख पाम्यां आज रे । इण विधि बिम्ब चरण सहु बंदी, सारया आतम काज रे ए तीरथ० ॥८६॥ धन ए
चैत्री पूनम दिवसे, सन् उगणी सै तीस रे । धन्य घड़ी धन्य बेला एहि
ज, पाम्या त्रिभुवन ईश रे ए तीरथ० ॥८७॥ दीन दयाल दयानिधि * उत्तम, ऋषभदेव जिनराय रे । एहिजा देव रह्या त्रिभुवन में, मोहन गुणना
दाय रे ए तीरथ० ॥८८॥ (दोहा)-कर जोड़ी विनती करूं, सुणो गरीब निवाज । कर्म सधन दुरे करी, दीजे त्रिभुवन राज ॥८९॥ मोसे अधम संसार में, कर्म सधन बस होय । तप जप संयम नहिं पले, किम पामु
पद तोय ॥९०॥ जे तुमरी आज्ञा धरे, तेहने दो जग राज। एह में प्रभु . अचरज नहीं, अचरज मुझने काज ॥९१॥ शशि गुण माहरो देखके,
खमिये सहु अपराध । तुमरा वचन हिये वस्या, अचल अमृत रस स्वाद ॥१२॥ तीन तत्व चौरंग से, रंगाणी मुझ देह । अब मिथ्या तपतंग को, रङ्ग चढ़े नहिं रेह ॥९३॥ तुम सहाय जोमाहरो, चेतन निज गुण पाय । तो अविचल आज्ञा धरूं तन मन वचन लगाय ॥९४॥ इम विनती प्रभुनी करी, समकित निर्मल काज । द्रव्य क्षेत्र काल भाव बिन, मिले न शिवपुर राज ॥९५॥ रत्न जडित सिंहासने, रयण आभूषणसार । अद्भुत रथ बैठे प्रभु, उच्छव करे नरनार ॥१६॥
(ढाल ) आज महोच्छव रंग रलीरी, ____ आज उच्छव दिन मुझ मन भायो आ० । संघ सहु मिल गावे वधाई, रथ बैठा सोहे जिनरायो आज० ॥९७|| वीणा मृदंग ताल कंसाला, मधुर ध्वनी अंबर रही छायो आज० ॥९८॥ मुर्शिदाबाद पूरव दिशि छाजे, अजीमगंज गंगा पार बसायो आ० ॥९९॥ बुद्धसिंह विसनचंद मिल भाई, गोत्र दुधेडिया मांही कहायो आ० ॥१००|गिरि महिमा सुण भाव धरीने, विधिसे यात्र करी सुख पायो आ० ॥१०॥ पुण्य संयोग मिल्यो मोहे सजनी, आनन्द दायक संघ सवायो आ० ॥१०२|| आज अंगन मोय । mra t reer...----.... metimi rrrrr..
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